Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा-वासुदेव श्रीकृष्ण का जन्म उसने कन्या की नाक काटकर' देवकी को पुन वापिस कर दिया।
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श्यामवर्णी होने के कारण गोकुल मे शिशु का नाम पड गया कृष्ण । कृष्ण देवताओ की रक्षा मे वढने लगे।
देवकी को अपने मृत-पुत्रो का तो सतोप हो गया किन्तु जीवित पुत्र से मिलने के लिए छटपटाने लगी। उसका मातृ-हृदय अधीर हो गया। एक मान ही व्यतीत हो पाया कि उसने पति से कहा
~नाथ । मैं गोकुल जाऊँगी।
वसुदेव भी देवकी की मनोदशा जानते थे। जिस माँ ने सात-पुत्र प्रनत्र किये फिर भी किसी को घडी भर गोद में लेकर प्यार न कर सकी उसके हृदय की व्यथा का क्या ठिकाना ? वसुदेव ने कहा
-प्रिये ! तुम्हारा अचानक ही गोकुल जाना, कस के दिल मे शक पैदा कर देगा। __ -किन्नु मेरा हृदय पुत्र को देखने के लिए व्याकुल है ।
-कोई बहाना करके जाओ तो ठीक रहेगा, अन्यथा पुत्र पर विपत्ति आने का भय है।
'पुत्र की विपत्ति' सुनकर देवकी विचारमग्न हो गई। वह पुत्र को देखना भी चाहती थी और विपत्ति भी नहीं आने देना चाहती थी।
१ (क) हन्दिा पुराण के अनुसार उसकी नाक चपटी कर दो गई।
(जिनसेन कृत हरिवश पुराण ३५/३२) . (ख) श्रीमद्भागवत मे इन कन्या को विष्णु को योगमाया माना गया है।
कम उम कन्या को मारने के लिए पछाडता, पटकता है तो वह कन्या छिटक कर आकाश में उड जाती है किन्तु जाते-जाते घोषणा कर जाती है कि 'हे कस । तुम्हारा शत्र तो उत्पन्न हो ही चुका है।'
(श्रीमद्भागवत १०/४/८-१२) इसके पश्चात् ही वसुदेव और देवकी को कम ने कारागार से मुन्न कर दिया क्योकि अब उन्हे बन्दी रखने से कोई लाभ न था।