Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 339
________________ चमत्कारी भेरी एक बार इन्द्र ने अपनी सभा मे कहा-बासुदेव कृष्ण न किसी के अवगुण देखते है और न अधम (नीच) युद्ध ही करते हैं। वे गुणग्राहक और वर्मयुद्ध ही करने वाले है । यह प्रशसा एक देव को अच्छी न लगी। वह परीक्षा लेने के विचार से द्वारका आया और वन मे एक रोगिणी कुतिया का रूप बनाकर बैठ गया। उस कुतिया का मारा गरीर नडा हुआ था और उसमे से दुर्गन्ध आ रही थी। उस समय कृष्ण न्थ में बैठकर स्वेच्छा विहार हेतु वन मे जा रहे थे। कुतिया को देखकर मारथी से वोले -देखो। इसके दाँत कैसे मोती मे चमक रहे है ? कितने सुन्दर हैं ? - यह कहकर कृष्ण आगे बढ गए। देव न कुतिया का रूप छोडा और एक तस्कर का रूप बनाकर उनका अन्य रत्न ले उडा। सेना ने पीछा किया तो उसने समस्त सेना को पराजित कर दिया । तव तक कृष्ण भी वहां पहुंच गए और ललकारते हुए बोले ~~-अरे तस्कर । मेरे अन्च को कहाँ लिए जा रहा है ? छोड इसे । -युद्ध करके ले लीजिए।-तस्कर ने निर्भीक उत्तर दिया। -~मै रथारूढ हूँ और तू भूमि पर ! यह युद्ध कैसे हो सकता है ? तेरे पास कोई शस्त्र भी तो नही है ? -~-मुझे न रथ की आवश्यकता है, न शस्त्रो की | इनके विना ही लड लूंगा। -यह कैसे हो सकता है ?

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373