Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा-प्रद्युम्न का द्वारका आगमन
२२६ -मूल्य की वात पीछे हो जायगी, पहले परीक्षा करलो।प्रद्य म्न ने सलाह की बात बताई।
भानुक प्रस्तुत हो गया । अकड़कर जैसे ही अश्व पर बैठा तो तुरन्त ही भूमि पर दिखाई दिया। दर्शक हँस पडे । भानुक ने कई वार प्रयास किया किन्तु हर वार जमीन चाटी । दर्शक गण हँसते-हँसते लोट-पोट हुए जा रहे थे। भानुक लज्जित होकर अपने भवन मे जा छिपा। साधारण अश्व होता तो वह सवारी कर भी लेता किन्तु वह तो मायावी था।
भानुक की हँसी उडवाकर प्रद्य म्न मेढे पर सवार होकर कृष्ण की सभा में जा पहुँचा। उसकी विचित्र चेप्टाओ को देखकर सभी सभासद हँसते-हँसते लोट-पोट हो गए।
सभासदो को हँसता हुआ छोडा और ब्राह्मण का वेश धारण करके मधुर स्वर मे वेद-पाठ करता हुआ प्रद्युम्न द्वारका की गलियो मे धूमने लगा। वही उसे सत्यभामा की कुब्जा नाम की दासी दिखाई दी। कुब्जा नाम भी उसका इसीलिए था कि उसकी कमर धनुष के समान वक्र थी। प्रद्य म्न ने विद्या-वल से उसे सीधा कर दिया । अपने वदने रूप को देखकर कब्जा की वॉछे खिल गईं। पैरो मे गिर कर बोली
-ब्रह्मण देवता । किधर जा रहे हो ? --जहाँ पेटभर भोजन मिल जाय । -तो मेरे साथ चलो। -क्या भरपेट भोजन मिलेगा?
-अवश्य । मैं महारानी सत्यभामा की दासी हूँ। उनके पुत्र का विवाह है । षट्रस व्यजन वने है। वहाँ तुम्हे इच्छानुसार भोजन मिल जायेगा।
-चलो वही सही । ब्राह्मण को क्या ? भरपेट भोजन से काम ।
दासी ब्राह्मण को साथ लेकर सत्यभामा के महल मे आई। उसे द्वार पर खडा रहने को कह, स्वय अन्दर गई । सत्यभामा ने उसे देखा तो पहिचान ही न पाई, पूछा