Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३१
___ अन्य व्यक्ति भी प्रात सोमश्री के बजाय वेगवती को देखकर विस्मय करने लगे। पति आज्ञा से वेगवती ने सोमश्री के हरण को घटना सवको वता दी।
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मानसवेग सोमश्री का हरण तो कर ले गया किन्तु उसकी कामेच्छा भी पूरी न हुई ओर बहन वेगवती भी चली गई । वह क्रोध से धधकने लगा। काम विगड जाने पर प्राणी को क्रोध आता ही है । उसने वसुदेव को मारने का निश्चय कर लिया। ___ एक रात को ले उडा सोते हुए वसुदेव को। वसुदेव को जैसे ही ज्ञात हुआ कि कोई विद्याधर उन्हे लिए जा रहा है, उन्होने एक जोरदार मुष्टि-प्रहार किया । मानसवेग विकल हो गया। घवडा कर उसने वसुदेव को छोड दिया। ___ मेघविन्दु के समान वसुदेव जा गिरे विद्याधर चडवेग के कधे पर। चडवेग गगा नदी मे खडा होकर विद्या सिद्ध कर रहा था । वसुदेव का स्पर्श होते ही उसे तुरन्त विद्या सिद्ध हो गई । अजलि वॉधकर बोला
-महात्मन् । आपने मेरा बडा उपकार किया है। मै आपका कृतज हूँ।
वसुदेव तो समझ रहे थे कि यह पुरुष क्रोधित होकर दो-चार खरी-खोटी सुनाएगा किन्तु यहाँ तो उल्टा ही हुआ। यह पुरुष विनम्र वचन बोल रहा है । वसुदेव ने मधुर और विनयपूर्ण स्वर मे कहा
-भाई । मुझे लज्जित मत करो। मै जान-बूझ कर तुम्हारे ऊपर नही गिरा । फिर भी मेरे कारण तुम्हे जो कष्ट हुआ उसके लिए हृदय से क्षमा-प्रार्थी हूँ।
-नहीं, जो विद्या मुझे दीर्घकाल से सिद्ध नही हो रही थी वह आपके स्पर्श मात्र से सिद्ध हो गई। मैं आपका कृतज्ञ हूँ। मैं आपको क्या हूँ?
वसुदेव विद्याधर की विनम्रता का रहस्य समझ गए। उन्होने उससे कहा-'यदि आप देना ही चाहते है तो आकाशगामिनी विद्या