Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा-रुक्मिणी-परिणय
१८१ दूत को स्पष्ट उत्तर मिल च का था । वह निराश वापिस लौट आया और रुक्मि की कठोर वाणी श्रीकृष्ण को सुना दी।
रुक्मि का उत्तर पाकर श्रीकृष्ण मौन रह गये किन्तु रुक्मिणी के हृदय को बहुत आघात लगा। वह तो मन ही मन कृष्ण को अपना पति मान चुकी थी। वह उदास रहने लगी। उसकी उदासीनता का कारण जानकर धात्री ने एकान्त मे उससे कहा__ ---राजकुमारी । जव तुम वालिका थी और मेरे अक मे वैठी हुई थी तव अतिमुक्त मुनि ने तुम्हे देखकर कहा था-'यह वालिका कृष्ण की पटरानी होगी।' मैंने उनसे पूछा-'कृष्ण कौन है ?' तव मुनिश्री ने बताया-'जो पश्चिम समुद्र के किनारे द्वारका नगरी बसाए-वही कृष्ण इसका पति होगा।' उसी कृष्ण ने दूत द्वारा तुम्हारी याचना की यी किन्तु तुम्हारे भाई रुक्मि ने ठुकरी दी। वह तुम्हे दमघोप के पुत्र शिशुपाल को देना चाहता है।।
धात्री के वचन सुनकर रुक्मिणी ने पूछा-क्या मुनि के वचन निष्फल होगे?
-क्या कभी निस्पृह सन्तो की भविष्यवाणी भी मिथ्या हो सकती है ?-धात्री ने प्रतिप्रश्न कर दिया।
रुक्मिणी घात्री के मुख की ओर देखने लगी। उसे मूझा ही नहीं कि इस प्रतिप्रश्न का क्या उत्तर दे? धात्री ने ही विश्वासपूर्वक कहा
-मुनि के वचन मिथ्या नही होगे। यदि तुम्हारी इच्छा हो तो गुप्त दूत कृष्ण के पास भेजूं ?
राजकुमारी रुक्मिणी ने धात्री को सहमति प्रदान की। धात्री ने एक गुप्त दूत पत्र लेकर श्री कृष्ण के पास भेजा। पत्र मे लिखा था
माघमास की शुक्ल अप्टमी को नाग पूजा के बहाने मै रुक्मिणी को लेकर नगर के वाहर उद्यान मे जाऊँगी। हे कृष्ण ! यदि तुन्हे रुक्मिणी का प्रयोजन हो तो वहाँ आ जाना अन्यथा उसका विवाह शिशुपाल के साथ हो जायगा।