Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 337
________________ श्रीकृष्ण-क्रया---गजसुकुमाल ३०४ स्वर्ग मे अपना आयुष्य पूर्ण करके सुभानु का जीद इसी भरतक्षेत्र कुरुजागल देश के हस्तिनापुर नगर मे सेठ श्वेतवाहन की स्त्री वधुमती का पुत्र शख हुआ, और वाकी के छहो भाई उसी नगर के राजा गगदेव की रानी नदयशा के गर्भ से दो-दो करके तीन वार मे छह पुत्र हुए। उनके नाम थे-गग, नददेव, खड्गमित्र, नंदकुमार, सुनद और नदिषण। जब नदयशा के सातवां गर्म रहा तो राजा उससे उदास रहने लगा। रानी ने समझा कि कोई कुपुत्र गर्भ मे आ गया है । अत. पुत्र उत्पन्न होते ही उसने रेवती नाम की धाय को सौंपकर कहा-इसे मेरी वहिन वधुमती को मौंप आओ। वधुमती ने उसका नाम निर्नामक रखा और उसका पालन किया। एक दिन ये सब लोग नदन वन गए। वहाँ राजा के छहो पुत्र एक साथ बैठ कर खा रहे थे । शख ने उनके साथ निर्नामक को भी बिठा दिया। यह देखकर नदयशा को बहुत क्रोध आया। उसने निर्मामक को एक लात मारी । इससे शख और निर्नामक को बहुत दुख हुआ। ___ अन्यदा अवधिज्ञानी मुनि द्रुमसेन पधारे उनसे शख ने निर्नामक और नदयशा का सम्बन्ध पूछा । तव मुनिश्री ने बताया सोरठ देश के गिरपुर नगर में चित्ररथ नाम का राजा राज्य करता था। उसके यहाँ अमृत रसायन (सुधारसायन) नाम का रमोइया था। वह मास खिलाकर राजा को प्रसन्न किया करता था। इसलिए उसने उसे बारह गाँव दे दिए । किसी दिन राजा चित्ररथ ने सुधर्म मुनि से उपदेश सुनकर व्रत ग्रहण कर लिए। उसके पुत्र मेघरथ ने भी श्रावक के व्रत स्वीकार कर लिए। उसने रसोइये से ११ गाँव भी छीन लिए। दूसरे दिन वे ही मुनि आहार के निमित्त राजा के यहाँ पधारे । रमोइये ने गाँव छिनने के वैर के कारण कडवी तु बी का आहार दे दिया। मुनि गिरनार पर्वत पर जाकर समाधिस्थ हो गए और मरकर अपराजित विमान मे अहमिन्द्र हुए। रसोइया भी मरकर तीसरे नरक मे उत्पन्न हुआ। वहां से निकल कर बहुत समय तक उसने ससार-भ्रमण किया।

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