Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२
कुण्ड) इतना गहरा था कि न गरुड ही आ मकते थे और न अन्य साधारण व्यक्ति ही ।
अन्यदा एक वार इस कुण्ड के जल मे से क्षुधातुर गरुड ने एक मत्स्य को बलपूर्वक पकड कर खा लिया। अपने मुखिया मत्स्यराज की मृत्यु से मछलियो को बडा दुख हुआ। उन्होंने महर्षि नौमरि से पुकार की । महपि ने मछलियो की भलाई के लिए गरुड को शाप दिया--'यदि गरुड फिर कभी इस कुण्ड मे प्रवेश करके मछलियो को खाएँगे तो उसी समय प्राणो से हाथ धो बैठेगे।'
इस शाप की वात कालिय नाग जानता था अत उसने इस कुण्ड को अपना स्थायी निवास बना लिया ।
[श्रीमद्भागवत स्कन्ध १०, अध्याय १७, श्लोक १-१२] जिम कुण्ड मे कालिय नाग का निवास था। उस स्थान का जल नाग के विप की गर्मी से उवलता रहता था। इसके ऊपर से आकाश में जाने वाले पक्षी भी झुलस कर मर जाते थे। इस विपैले जल से वायु भी दूपित हो गई थी और आस-पास के घास-पात वृक्ष आदि भी जल कर नष्ट हो गए ये । तव श्रीकृष्ण ने यमुना के जल को शुद्ध करने का निश्चय किया।
वे एक ऊँचे कदम्ब के वृक्ष पर चढे और कुण्ड में कूद पडे । उन्होने जल को मथ डाला । तव कुपित होकर कालिय नाग उनके सम्मुख आया । नाग ने बालक कृष्ण को अपने पाश मे वॉध लिया ।
तब तक गोकूल से गोप, ग्वाल-बाल सभी निवासी वहाँ जा पहुँचे । कृष्ण को नाग पाश मे निश्चेप्ट पड़ा देख कर गोकुल वासी वडे दुखी हुए और विलाप करने लगे।
उनके दुख को दूर करने के लिए कृष्ण ने अपना बल दिखाया और शरीर को बहुत फुला लिया । इससे नाग को कष्ट