Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण कथा-अन्य पटरानियाँ
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उधर को उठी तो कृष्ण एक वृक्ष की ओट मे छिप गए । जाववती को लगा चन्द्र निकला और छिप गया । वह तुरन्त जल से बाहर निकली और वस्त्र वदल कर कृष्ण के समीप आई।
श्रीकृष्ण ने उसे अनुक्त जानकर रथ मे विठाया और द्वारका की ओर ले चले।
सखियो ने देखा कि राजकुमारी का हरण हो रहा है तो उन्होने गोर मचा दिया।
पुत्री के अपहरण की बात सुनकर जववान हाथ मे तलवार लेकर पीछे दौडा । किन्तु मार्ग मे ही अनावृष्टि ने उसे पराजित करके वन्दी वना लिया और कृष्ण के सामने ला पटका।
पराजित राजा जववान ने पुत्री जाववती कृष्ण को दी और स्वय प्रवजित हो गया।
जववान के पुत्र विश्वक्सेन को साथ लेकर श्रीकृष्ण जाववती सहित द्वारका आए।
जाववती को रुक्मिणी के समीप का महल निवास के लिए प्राप्त हुआ और उसने भी रुक्मिणी मे सखीपना स्थापित कर लिया ।।
विद्याधर पुत्री जाववती को उसके योग्य समृद्धि श्रीकृष्ण ने दे दी।
___-हे स्वामी | सिहलपति ग्लक्ष्णरोमा आपकी आज्ञा का अनादर करता है । उसकी लक्ष्मणा नाम की पुत्री शुभ लक्षण सम्पन्न है। वह हुमसेन सेनापति की रक्षा मे समुद्र-स्नान के लिए आती है और वहाँ सात दिन तक रहती है । लक्ष्मणा सभी प्रकार से योग्य है । -दूत ने कृष्ण से कहा।
दूत की इस विज्ञप्ति को सुनकर कृष्ण अपने अग्रज वलराम को साथ लेकर वहाँ पहुंचे।
द्रुमसेन सेनापति ने विरोध किया तो उसे तालवृक्ष की भाँति छेद दिया और लक्ष्मणा को ले आए।