Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाना
भाग ३१
चडवेग के ऊपर आकाश मे गिरेगा । उसके स्पर्श मात्र से इसे विद्या सिद्धि हो जायेगी । '
याचना ठुकराए जाने के कारण बलवान राजा त्रिशिखर हमारे पिता विद्युद्वेग को बाँध ने गया ।
अपने वश का परिचय देते हुए दधिमुख ने आगे बतायाहमारे वश का प्रारभ नमि राजा से हुआ है । उसका पुत्र पुलस्त्य हुआ । इसी वश मे मेघनाद नाम का राजा हुआ जिसे उसके जामाता सुभूम चक्रवर्ती ने वैताढ्य गिरि की उत्तर और दक्षिण दोनो श्रेणियो का राजा वना दिया था। साथ ही उसे ब्रह्मास्त्र आग्नेयास्त्र आदि अनेक दिव्य अस्त्र भी दिये। इसी वश मे रावण, विभीषण आदि हुए विभीषण के वश मे हमारे पिता विद्युद्वेग ने जन्म लिया ।
अनुक्रम से वे सभी दिव्यास्त्र हमारे पास हैं । उन्हें आप ग्रहण करिए | क्योकि दिव्यास्त्र महाभाग्यवान् के हाथ मे सफल होते है और मदभागी के पास निष्फल |
वसुदेव ने वे सभी दिव्यास्त्र विधिपूर्वक ग्रहण कर लिए।
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'मदन वेगा जैसी सुन्दरी एक साधारण भूमिगोचरी मनुष्य के साथ व्याह दी गई' सुनकर राजा त्रिशिखर के तन-बदन मे आग लग गई । क्या उसका विद्याधर पुत्र सूर्पक मदनवेगा के योग्य नही था ?
त्रिशिखर युद्ध हेतु चढ आया । दधिमुख आदि विद्याधरो ने इन्द्रास्त्र वसुदेव को दिया । वसुदेव ने इन्द्रास्त्र से त्रिशिखर का शिरच्छेद कर दिया और दिवम्तिलक नगर मे जाकर राजा विद्युद्वेग को बन्धनमुक्त करा लिया ।
इसके बाद मदनवेगा से उनका अनाधृष्टि नाम का पुत्र प्राप्त हुआ । -त्रिषष्टि० ८ / २
-वसुदेव हिंडी, वेगवती और मदनवेगा लभक
विशेष- मदनवेगा लभक के अन्तर्गत रामायण की कथा दी है और उसमे रावण के पूर्वजो का वर्णन करते हुए उनका नाम सहस्रग्रीव, शतग्रीव, पचासग्रीव आदि बताया है ।