Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३३ शाव को अपनी भूल ज्ञात हो गई। उसने अजलि वॉध कर कहा
-क्षमा कीजिए दादाजी । मै अज्ञानवश आपका तिरस्कार कर वैठा। क्षमा मांगकर उसने वसुदेव को प्रणाम किया और चला आया।
-वसुदेव हिडी, --त्रिषष्टि०१७
वशेष-वसुदेव हिंडी मे शाब का १०८ कन्याओ के साथ विवाह का उल्लेख है।
यहाँ प्रद्युम्न न तो बाहर ही जाता है और न शाव से मिलता है । कथा अन्य प्रकार से दी हुई है।
__सत्यभामा ने शाव की अनुपस्थिति में अपने पुत्र सुभानुकुमार का विवाह १०८ कन्याओ से करना चाहा। १०७ कन्याएँ उसे प्राप्त हो गई । यह सव वात शाव को प्रज्ञप्ति विद्या द्वारा ज्ञात हो गई। उसने एक कन्या का रूप बनाया और एक सार्थवाह के पास अपनी धात्री माता (यह प्रज्ञप्ति विद्या थी) के साथ आया । धात्री माता और वह सार्थवाह
के साथ द्वारका आ गई । वहाँ सुभानु ने उसे देखा । उसके रूप-गुण पर - मोहित होकर उसने खाना-पीना त्याग दिया। तव कृष्ण और सत्यभामा
उसे लिवा लाए। उसने स्पष्ट कह दिया कि 'मैं गणिका पुत्री हूँ किन्तु सुभानु इस पर भी विवाह के लिए तैयार हो गया। तव शाव ने उन १०७ कन्याओ को भी शाब के रूप-गुणो का बखान करके उन्हे सुभानु के विरुद्ध कर दिया। कन्याओ ने सुभानु के साथ विवाह करने से इन्कार कर दिया। तव शाव प्रगट हुआ और उसका विवाह उन १०७ कन्याओ से हो गया । सुहिरण्या के साथ भी उसका विधिवत विवाह हुआ । इस प्रकार शाव की १०८ पत्नियाँ हो गई।