Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 369
________________ श्रीकृष्ण - कथा - वासुदेव - वलभद्र का अवसान ३४१ बढ़ा और एक सूखे ठूंठ को पानी पिलाने लगा । वलराम ने व्यगपूर्वक कहा -जने ठूंठ को पानी पिलाने से क्या लाभ ? -हरा हो जायगा । - वज्रमूर्ख है तू । यह कभी हरा नही हो सकता । - क्यो नही हो सकता ? जव तुम्हारा मृत भाई जीवित हो सकता है तो यह ठूंठ हरा क्यो हो सकता ? बलराम पुन सुनी-अनसुनी करके आगे वढ गए। देव ने भी एक ग्वाले का रूप बनाया और एक मरी गाय को घास खिलाने लगा । वलराम ने उससे कहा -कही मरी गाय भी घास खाती है ? जीवित होती तो खाती । क्यो व्यर्थ परिश्रम कर रहे हो ? - जब तुम अपने भाई के मृत कलेवर को छह माह से ढोने का परिश्रम कर रहे हो तो .. - क्या मेरा भाई मृत है ? बलराम ने सरोष कहा । - तो क्या मेरी गाय मृत है ? - देव का प्रतिप्रश्न था । - जब घास नही खाती, हलन चलन नही करती तो मृत ही है । -यह लक्षण तो तुम्हारे भाई के शरीर के भी है । वह भी तो नही खाता, हलन चलन भी नही करता, फिर वह कैसे जीवित है ? वलराम मौन होकर सोचने लगे । देव ने ही पुन कहा- विश्वास न हो तो स्वयं परीक्षा कर लो । ... देव की बात सुनकर वलराम ने अपने कधे से कृष्ण का शव उतारा और देखने लगे । शव में से तीव्र दुर्गन्ध आ रही थी। जीवन का कोई लक्षण शेप नही था । वे विचारमग्न हो गए तभी देव ने सिद्धार्थ सारथी का रूप बनाकर बलराम को सवोधित किया - १ (क) आचार्य जिनमेन के हरिवशपुराण के अनुसार 'जरत्कुमार (जराकुमार) द्वारा श्रीकृष्ण के निधन का समाचार पाकर पाडव माता कुती और द्रोपदी के साथ आते है और वलभद्र से कृष्ण

Loading...

Page Navigation
1 ... 367 368 369 370 371 372 373