Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 362
________________ ३३४ जैन कथामाला · भाग ३६ बताया है । अर्हन्त के वचन कभी मिथ्या नहीं होते । ये अग्नि ज्वालाएं मेरा कुछ भी नही विगाड सकती। देखता हूँ मुझे यह अग्नि कैसे जलाती है ? उसके शब्द सुनकर जम्भृक देव प्रकट हुआ और उसे उठाकर अरिष्टनेमि की गरण मे ले गया । कुमार कुब्जावारक ने वहाँ दीक्षा ग्रहण की। द्वारका छह महीने तक जलती रही। उसमे साठ कुल कोटि और वहत्तर कुल कोटि यादव भस्म हो गये। उसके पश्चात मागर में भयकर तूफान उठा और नगरी जलमग्न हो गई। जहाँ छह माह पूर्व समृद्ध द्वारका थी उस स्थान पर सागर लहराने लगा । द्वारका का नाम निशान भी मिट गया । जल मे से निकली द्वारका जल में ही समा गई। --अतकृत, वर्ग ५ -त्रिषष्टि० ८।११ -उत्तरपुराण ७२११७८-१८७ तया २२१ उत्तरपुराण को विशेषताएँ निम्न है :(१) यहाँ द्वारका के विनाश के बारे मे वलभद्र भगवान अरिष्टनेमि से पूछते हैं। (२) श्रीकृष्ण ने पहली भूमि मे प्रयाण किया । (श्लोक १८१) (३) बलभद्र चौथे स्वर्ग मे उत्पन्न होगे। (श्लोक १८३)

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