Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा-द्रोपदी स्वयवर
इस अद्भत ओर अकरणीय कार्य को देखकर उपस्थित राजा एव वासुदेव कृष्ण, वलराम, दशो दशाह आदि सभी चकित रह गए। उनके मुख से भॉति-भॉति गब्द निकलने लगे
यह क्या ? -घोर अकृत्य। -अन्यायपूर्ण आचरण । --एक स्त्री के पाँच पति। -न कभी सुना न देखा। एक राजा ने कुछ सयत स्वर मे कहा-सभवत राज-पुत्री पर किसी कुदेव की छाया पड गई है।
महाराज द्र पद अपनी पुत्री के इस अनोखे कृत्य पर वडे दु खो हुए। वे तो हतप्रभ ही रह गए। कुछ बोल ही न सके । पुत्री ने एक ऐसा प्रश्नचिह्न उपस्थित कर दिया था जिसका समाधान आवश्यक था। किन्तु समाधान कौन करे ? वरमाला कण्ठ मे पडते ही पाँचो पाडव उसके पति हो गए -यही लौकिक रीति थी, किन्तु लौकिक परम्परा मे एक स्त्री के अनेक पति नही हो सकते, यह अति निद्य था। हाँ, एक पति की अनेक पत्नियाँ समाज द्वारा मान्य थी।
राजा लोग समाधान के लिए वासुदेव कृष्ण की ओर देखने लगेक्योकि वही उस समय विवेकी और नीतिवान राजा थे । कृष्ण दशो दशाह की ओर देखते । नजरे मिलती और फिर हट जाती। किसी को
(यह शल्य राजा की वहन थी) से नकुल और सहदेव दो पुत्र । ये पांचो पाडु राजा के पुत्र होने के कारण पाडव कहलाते थे।
चित्रवीर्य की मृत्यु के पश्चात हस्तिनापुर का सिंहासन पाडु को मिला किन्तु वह मृगया प्रेमी थे। अत राज्य को सचालन धृतराष्ट्र के हाथो मे नौपकर वे निश्चित से हो गये । फिर भी शासक तो पाडु ही थे। - . - - पाँचो पाडव न्याय नीतिपूर्ण आचरण करने वाले थे।
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