Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा--छोटी उम्र बडे काम
१४१ यशोदा ने तो मानो उस दृश्य से आँख ही मीच ली। वह तो केवल अपने पुत्र को ही देख रही थी। उसी की कुशलता मे उसका स्वर्ग था। ____ नन्द ने आदेश दिया, पत्नी को-~____-आज से कभी कृष्ण को अकेला नही छोडना । कोई दूसरा काम हो या न हो, शिशु की रक्षा करना आवश्यक है, समझी।
. -समझ गई। नन्दरानी ने कहा और पुत्र को छाती से चिपका लिया। ___ यशोदा उस दिन से कृष्ण को अपने पास ही रखती । कभी दृष्टि से ओझल नही होने देती। किन्तु बालक चपल स्वभाव के होते ही है, कृष्णं भी चुप-चाप घुटनो चलते हुए इधर-उधर निकल जाते । नन्दरानी उन्हे दौड-दौड कर पकडकर लाती । कृष्ण की नटखट लीलाओ से यशोदा परेशान हो उठी।
उसने एक उपाय सोच ही लिया
रस्सी का एक सिरा कृष्ण की कमर मे वाँधा और दूसरा छोर ऊखल से । इस प्रकार कृष्ण को बाँधकर यशोदा अडोस-पडोस मे चली जाती।
___ सूर्पक विद्याधर का पुत्र अपने पितामह की मृत्यु का बदला चुकाने के लिए वसुदेव के पुत्र कृष्ण को मारने गोकुल आया। अपनी दोनो वहिनो शकुनि और पूतना की मृत्यु के लिए भी वह कृष्ण को दोषी मानता था । वह यमल और अर्जुन जाति के दो वृक्षो. का रूप बना कर कृष्ण के घर के सामने आ खडा हुआ। . . .. . १.. (क) हरिवंश पुराण मे जमल और अर्जुन नाम की दो देवियाँ मानी गई है।
(जिनसेन हरिवश पुराण, ३५/४५) (ख) श्रीमदभागवत मे यमलार्जुन उद्धार की घटना सविस्तार वर्णन
की गई है