Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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बलभद्र का जन्म
हस्तिनापुर के श्रेष्ठी के पुत्र का नाम था ललित | ललित स्वभाव से भी ललित था और रूप मे भी । माता का अति लाडला और पिता की आँखो का तारा ।
ललित की माता ने पुन गर्भ धारण किया। अबकी बार उसे सताप रहने लगा । ज्यो- ज्यो गर्भ की अभिवृद्धि हुई त्यो त्यो माँ की कषाय- वृद्धि | सेठानी को इतनी घृणा थी अपने गर्भस्थ शिशु से कि वह किसी न किसी प्रकार उसका प्राणान्त कर ही देना चाहती थी । गर्भपात के लिए उसने अनेक औषधियो का सेवन किया, मत्र-तत्रो का प्रयोग किया किन्तु सब निष्फल | 'मर्ज वढता गया ज्योज्यो दवा की' वाली उक्ति चरितार्थ हो रही थी कि 'गर्भ बढता गया ज्यो- ज्यो उसे गिराने की चेष्टा की ।' गर्भस्थ शिशु भी पूरी आयु लेकर आया था - अकाल ही कैसे मरण कर जाता ?
सेठजी भी सेठानी की इन हरकतो से अनजान नही थे, पर वे करते भी क्या ? सेठानी दासियो के जरिये यह सब काम करा लेती । ललित भी अपनी माता के इन कृत्यों को भली-भाँति जानता था । दोनो पिता-पुत्र मौन होकर उस घडी की वाट जोह रहे थे जब कि शिशु का जन्म होता था ।
वह घडी भी आई। सेठानी ने पुत्र प्रसव किया। वह सतापित तो पहले से ही थी । घृणा के मारे उसने पुत्र का मुख देखकर अपना मुँह विचका लिया । तुरन्त दासी को बुलाया और कहा -
- इसे ले जाकर किसी निर्जन स्थान पर छोड़ आओ ।
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