Book Title: Ashtpahud
Author(s): Jaychandra Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ अवश्य कर्तव्य तथा उपकारको नीचे गिराना है, इत्यादि वाक्य कह कर उस पदवीको वापिस करा दिया था। इस कथानकसे पूरी तौर पता चलता है कि आप तथा आपके पुत्र कितने बड़े विद्वान् थे और आप ऐहिक आकांक्षासे कितने निर्पक्ष थे। आपके पिताका नाम मोतीरामजी था जातिके खंडेलवाल श्रावक थे तथा छावड़ा गोत्र में आपका जन्म हुआ था आपकी जिस समय ११ वर्षकी अवस्था थी उस समय से जैन धर्मकी तरफ आपका विशेष चित्त आकर्षित हुआ। आप तेरह पंथके अनुयायी थे। तथा आप परकृत उपकारको विशेष मानते थे इसलिये आप में कृतज्ञता भी भरपूर थी क्यों कि पं. बंशीधरजी पं. टोडरमलजी पं. दौलतरामजी त्यागी रायमल्लजी व्रती मायारामजी वगैरःकी कृति तथा इनका उपकार रूप वखान आपने बड़ेही मनोज्ञ शब्दोंमें किया है। आपने गोमठसार, लब्धि सार, क्षपणासार, समयसार, अध्यात्मसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय, राजवार्तिक श्लोकवार्तिक, अष्ट सहस्री, परीक्षामुख प्रमुख अनेक ग्रंथोंका पठन तथा मनन किया था जिनका कि सब विषयक खुलासा भाषा सर्वार्थसिद्धि वगैरःकी प्रशस्ति 'पढ़नेसे हो जाता है। आपने जो जो अनुवादरूप ग्रंथ कृति की है उसका खुलासा हम प्रमेय रत्नमाला की भूमिकामें कर ही चुके हैं। सर्वार्थसिद्धि वगैरःके समान आपने इस अष्टपाहुडमें भी बहुत ही भव्य प्रयास किया है। आपने अति कठिन प्रथोंका भी सीधी हृदयग्राही भाषामें अनुवाद कर एक बहुत बड़ी समाजकी त्रुटिको पूरा किया है। इस कारण आपके विषयमें समाजका आभारी होना योग्य ही है। यह पाहुड ग्रंथ यथा नाम तथा विषयसे आठ अंशोंमें विभक्त है जैसे कि दर्शन पाहुडमें-दर्शन विषयक कथन, सूत्र पाहुडमें-सूत्र ( शास्त्र ) संबंधी कथन, 'इत्यादि । पंडितजीने इस ग्रंथकी टीकाकी समाप्ति विक्रम सम्वत् १८६७ भाद्रपद सुदि १३ को की है-जैसाकि आपने इस ग्रंथकी प्रशस्तिमें लिखा है सवंत्सर दश आठ सत सतसठि विक्रमराय। मास भाद्रपद शुक्ल तिथि तेरसि पूरन थाय ।। पंडितजीके ग्रंथों में आदि तथा अंतके मंगलाचरणसे पता लगता है कि आप 'परम आस्तिक तथा देव गुरु शास्त्र में पूर्ण भक्ति रखते थे। सत्यतो यह है कि जहां आस्तिकता तथा भक्ति है वहां सर्वकी उपकार की बुद्धि भी है यही वात

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 460