Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
दुष्प्रणिधान कहा गया है। यथा - मनोदुष्प्रणिधान, वचनदुष्प्रणिधान, कायदुष्प्रणिधान। इस प्रकार यावत् वैमानिक तक सब पञ्चेन्द्रिय जीवों के होते हैं। तीन प्रकार की संसारी जीवों के उत्पन्न होने की योनि कही गई है। यथा - शीत, उष्ण और शीतोष्ण यानी मिश्र। इस प्रकार तेउकाय को छोड़ कर शेष एकेन्द्रिय जीवों के और विकलेन्द्रिय जीवों के तथा सम्मूछिम तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय जीवों के और सम्मूछिम मनुष्यों के उपरोक्त तीनों योनि पाई जाती हैं। अथवा दूसरी तरह से तीन प्रकार की योनि कही गई है। यथा - सचित्त, अचित्त और मिश्र। इस प्रकार एकेन्द्रिय विकलेन्द्रिय सम्मूच्छिम तिर्यंच पञ्चेन्द्रिय और सम्मूच्छिम मनुष्यों के ये तीनों योनि पाई जाती हैं। अथवा दूसरी तरह से तीन प्रकार की योनि कही गई है। यथा - संवृत्त यानी ढकी हुई, विवृत्त यानी बिना ढकी हुई उघाड़ी और संवृत्त विवृत्त यानी मिश्र। अथवा दूसरी तरह से तीन प्रकार की योनि कही गई है। यथा- कूर्मोन्नता, शंखावर्ता और वंशीपत्रिका । कूर्मोन्नता योनि उत्तम पुरुषों की माताओं के होती हैं। कूर्मोन्नता योनि में तीन उत्तम पुरुष गर्भ में आते हैं। यथा - अरिहन्त यानी तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती और बलदेव वासुदेव। शंखावर्ता योनि चक्रवर्ती के स्त्रीरत्न यानी श्री देवी के होती है। शंखावर्ता योनि में बहुत से जीव और पुद्गल उत्पन्न होते हैं नष्ट होते हैं चवते हैं फिर उत्पन्न होते हैं किन्तु निपजते नहीं है। वंशीपत्रिका योनि सामान्य मनुष्यों की माताओं के होती हैं। वंशीपत्रिका योनि में बहुत से सामान्य मनुष्य गर्भ में आकर उत्पन्न होते हैं।
विवेचन - मन आदि की एकाग्रता को 'प्रणिधान' कहते हैं। सुप्रणिधान यानी शुभ प्रवृत्ति की एकाग्रता और दुप्रणिधान यानी दुष्ट प्रवृति रूप एकाग्रता।
योनि - योनि अर्थात् उत्पत्ति स्थान अथवा जिस स्थान में जीव अपने कार्मण शरीर को औदारिक आदि स्थूल शरीर के लिए ग्रहण किये हुए पुद्गलों के साथ एकमेक कर देता है उसे 'योनि' कहते हैं। योनि के तीन-तीन भेद इस प्रकार है -
१.शीत योनि- जिस उत्पत्ति स्थान में शीत स्पर्श हो उसे शीत योनि कहते हैं। २. उष्ण योनि- जिस उत्पत्ति स्थान में उष्ण स्पर्श हो वह उष्ण योनि है।
३. शीतोष्ण योनि - जिस उत्पत्ति स्थान में कुछ शीत और कुछ उष्ण स्पर्श हो उसे शीतोष्ण योनि कहते हैं।
- देवता और गर्भज जीवों के शीतोष्ण योनि, तेजस्काय के उष्ण योनि, नैरयिक जीवों के शीत और उष्ण योनि तथा शेष जीवों के तीनों प्रकार की योनियां होती हैं। अथवा योनि तीन प्रकार की कही गई है -
१. सचित्त योनि - जो योनि जीव प्रदेशों से व्याप्त हो उसे सचित्त योनि कहते हैं। २. अचित्त योनि - जो योनि जीव प्रदेशों से व्याप्त न हो उसे अचित्त योनि कहते हैं।
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