Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 411
________________ ३९४ श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 कठिन शब्दार्थ - समा - समान, अपइट्ठाणे णरए - अप्रतिष्ठान नाम का सातवीं नरक का नरकावास, पालए - पालक, जाणविमाणे - यान विमान, सव्वदृसिद्धे - सर्वार्थसिद्ध, सपक्खिं - सपक्ष-सब दिशाओं में समान, सपडिदिसिं - सप्रतिदिक्-सभी-विदिशाओं में समान, सीमंतए - सीमन्तक, समयक्खेत्ते - समय क्षेत्र, उड्डुविमाणे - उडु विमान, इसीपब्भारा पुढवी- ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी यावी सिद्ध शिला, बिसरीरा - द्विशरीर-दो शरीर वाले, उराला-उदार, तसा - त्रस, पाणा-प्राणी। भावार्थ - इस लोक में चार स्थान समान कहे गये हैं यथा - सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नामक नरकावास, जम्बूद्वीप, सौधर्मेन्द्र का जाने आने का पालक नामक विमान और सर्वार्थसिद्ध नामक अनुत्तर विमान । ये चारों एक लाख योजन के हैं । इस लोक में चार स्थान दिशाओं और विदिशाओं में अत्यन्त समान कहे गये हैं यथा - प्रथम नरक का सीमन्तक नामक नरकावास, समय क्षेत्र यानी ढाई द्वीप, उडुविमान यानी सौधर्म देवलोक का पहला प्रस्तट - पाथड़ा और ईषत्प्राग्भारा नामक पृथ्वी । ये चारों ४५ लाख योजन के लम्बे चौड़े गोलाकार हैं । ऊर्ध्व लोक में चार प्रकार के जीव दो शरीर वाले कहे गये हैं यथा - पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक और उदारत्रस प्राणी यानी पञ्चेन्द्रिय जीव । . इसी तरह अधोलोक में और तिर्छालोक में उपरोक्त चार प्रकार के जीव द्विशरीर वाले कहे गये हैं। विवेचन - प्रश्न - प्रायः करके, थोकड़ा वाले पूछा करते हैं कि - चार लक्खा कौन से हैं ? अर्थात् एक लाख की लम्बाई चौड़ाई वाले चार पदार्थ कौन से हैं? ___उत्तर - यहाँ बतलाया गया है कि - सातवीं नरक का अप्रतिष्ठान नरकेन्द्र, जम्बूद्वीप, सर्वार्थसिद्ध और पहले देवलोक का पालक नाम का यान विमान, ये चार पदार्थ एक लाख योजन के लम्बे और एक लाख योजन के चौड़े हैं। इनकी परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सो सत्ताईस योजन तीन गाउ एक सौ अट्ठाईस धनुष और साढ़े तेरह अंगुल से कुछ अधिक है। इन चारों में जो विशेषता है वह ठाणाङ्ग सूत्र के तीसरे ठाणे के पहले उद्देशक में इस प्रकार बतलाई गयी है - "तओ लोगे समा सपक्खि सपडिदिसिं" अर्थात् अप्रतिष्ठान नरक, जम्बूद्वीप और सर्वार्थसिद्ध ये तीन तो दिशा और विदिशा में समान रूप से आये हुए हैं। किन्तु पालक विमान को तो जब इन्द्र कहीं बाहर जाता हो तब वैक्रिय से बनाया जाता है। वह उपरोक्त तीन की तरह समान दिशा और विदिशा में आया हुआ नहीं है। यह सवारी के काम आता है। इसलिये इसको यान (आना-जाना) विमान कहते हैं। प्रश्न - पैंतालीस लाख के लम्बे और पैंतालीस लाख के चौड़े चार पदार्थ कौन से हैं? (चार पैंताला कौन से हैं? थोकड़ा वाले पूछते हैं।) उत्तर - अढाई द्वीप में चार वस्तुएं पैंतालीस लाख पैंतालीस लाख योजन की लम्बी चौड़ी कही गई है। यथा - पहली नरक के प्रथम प्रतर (प्रस्तट) में गोल मध्यभागवर्ती नरकेन्द्र है जिसका नाम "सीमन्तक" है। सौधर्म और ईशान अर्थात् पहले और दूसरे देवलोक के पहले प्रतर में चारों दिशाओं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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