Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 आदि प्रायश्चित्त कहे गये हैं वह ज्ञान प्रायश्चित्त है । इसी प्रकार दर्शन प्रायश्चित्त और चारित्र प्रायश्चित्त का स्वरूप भी समझना चाहिये । ___ व्यक्तकृत्य प्रायश्चित्त - गीतार्थ मुनि छोटे बड़े आदि का विचार कर जो कुछ प्रायश्चित देते हैं वह सभी पाप विशोधक है। इसलिये व्यक्त अर्थात् गीतार्थ का जो कृत्य है वह व्यक्त कृत्य प्रायश्चित्त
___प्रायश्चित्त के अन्य प्रकार से चार भेद हैं - १. प्रतिसेवना प्रायश्चित्त २. संयोजना प्रायश्चित्त ३. आरोपणा प्रायश्चित्त और ४. परिकुञ्चना प्रायश्चित्त ।
१. प्रतिसेवना प्रायश्चित्त - प्रतिषिद्ध (निषेध किये हुए) का सेवन करना अर्थात् अकृत्य का सेवन करना प्रतिसेवना है । इसमें जो आलोचना आदि प्रायश्चित्त है, वह प्रतिसेवना प्रायश्चित्त है ।
२. संयोजना प्रायश्चित्त - एक जातीय अतिचारों का मिल जाना संयोजना है । जैसे कोई साधु शय्यातर पिण्ड लाया, वह भी गीले हाथों से, चह भी सामने लाया हुआ और वह भी आधाकर्मी है । इसमें जो प्रायश्चित्त होता है वह संयोजना प्रायश्चित्त है ।
३. आरोपणा प्रायश्चित्त - एक अपराध का प्रायश्चित्त करने पर बार बार उसी अपराध को सेवन करने रूप दूसरे प्रायश्चित्त का आरोप करना आरोपणा प्रायश्चित्त है। जैसे एक अपराध के लिये पांच दिन का प्रायश्चित्त आया । फिर उसी के सेवन करने पर दस दिन का, फिर सेवन करने पर १५ दिन का । इस प्रकार ६ मास तक लगातार प्रायश्चित्त देना । छह मास से अधिक तप का प्रायश्चित्त नहीं दिया जाता है।
४. परिकुञ्चना प्रायश्चित्त - द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा अपराध को छिपाना या उसे दूसरा रूप देना परिकुञ्चना है । इसका प्रायश्चित्त परिकुञ्चना प्रायश्चित्त कहलाता है ।
काल चउविहे काले पण्णत्ते तंजहा - पमाण काले, अहाउयणिव्यत्ति काले, मरण काले, अद्धा काले।
पुद्गल परिणाम चउविहे पोग्गलपरिणामे पण्णत्ते तंजहा - वण्ण परिणामे, गंध परिणामे, रस परिणामे, फास परिणामे ।
महाव्रत . भरहेरवएसु णं वासेसु पुरिमपच्छिमवजा मज्झिमगा बावीसं अरिहंता भगवंतो चाउज्जामं धम्मं पण्णवेति तंजहा - सव्वाओ पाणाइवायाओ वेरमणं, सव्वाओ
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