Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
कठिन शब्दार्थ - तरगा - तिरने वाले, गोप्पयं - गोपद को, विसीयइ - खेदित हो जाता है, कुंभा- कुम्भ-घड़े, पुण्णे - पूर्ण, पुण्णोभासी - पूर्णावभासी-परिपूर्ण दिखाई देने वाला, पुण्णरूवे - सुंदर रूप (आकार) वाला, पिय?- प्रियार्थ-प्रियकारी, अवदले - अप्रियकारी, विस्संदइ- पानी निकलता है, भिण्णे-भिन्न, जजरिए - जर्जरित, परिस्साई - परिस्रावी, अपरिस्साई - अपरिस्रावी, महुकुंभेंमधुकुम्भ, महुष्पिहाणे - मधु पिधान, विसकुंभे- विष कुम्भ, विसप्पिहाणे - विपिधान-विष के ढक्कन वाला, हिययं - हृदय, अपावं - पाप रहित, अकलुसं - अकलुष-कलुषता रहित, जीहा - जिह्वा, कडुयभासिणी- कटुकभाषिणी-कड़वे वचन बोलने वाली।
. भावार्थ - चार प्रकार के तिरने वाले पुरुष कहे गये हैं यथा - 'मैं समुद्र को तिरूंगा' ऐसा विचार करके कोई पुरुष समुद्र को तिरता है । मैं समुद्र को तिरूंगा' ऐसा विचार करके कोई पुरुष गोपद यानी गाय का पैर जितने पानी में डूबे उतने पानी वाले खड्डे को तिरता है । 'मैं गोपद को तिरूंगा' ऐसा विचार करके कोई पुरुष समुद्र को तिरता है । 'मैं गोपद को तिरूंगा' ऐसा विचार करके कोई पुरुष गोपद को तिरता है । चार प्रकार के तिरने वाले कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष समुद्र को तिर कर यानी समुद्र के समान बड़े कार्य को करके फिर किसी बड़े कार्य को करने में खेदित हो जाता है । कोई एक पुरुष समुद्र के समान बड़े कार्य को करके फिर किसी गोपद के समान छोटे कार्य में खेदित हो जाता है । कोई एक पुरुष गोपद के समान छोटे कार्य को करके फिर किसी समुद्र के समान बड़े कार्य में खेदित हो जाता है । कोई एक पुरुष गोपद के समान छोटा कार्य करके फिर किसी गोपद के समान छोटे कार्य में भी खेदित हो जाती है। ___ चार प्रकार के कुम्भ यानी घड़े कहे गये हैं यथा - कोई एक कुम्भ पूर्ण यानी सम्पूर्ण अवयवों से . युक्त एवं प्रमाणोपेत है और पूर्ण यानी मधु एवं घृत आदि से भरा हुआ है । कोई एक घड़ा पूर्ण अवयव वाला है किन्तुं मधु आदि से भरा हुआ नहीं है । कोई एक घड़ा तुच्छ यांनी अपूर्ण अवयव वाला है किन्तु मधु आदि से परिपूर्ण अर्थात् भरा हुआ है । कोई एक घड़ा तुच्छ यानी अपूर्ण अवयव वाला है
और मधु आदि से भी भरा हुआ नहीं है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष जाति आदि गुणों से युक्त है और ज्ञानादि गुणों से भी युक्त है । कोई एक पुरुष जाति आदि गुणों से तो युक्त है किन्तु ज्ञानादि गुणों से युक्त नहीं है। कोई एक पुरुष जाति आदि गुणों से तो रहित है किन्तु ज्ञानादि गुणों से युक्त है । कोई एक पुरुष जाति आदि गुणों से रहित है और ज्ञानादि गुणों से भी रहित है । चार प्रकार के कुम्भ यानी घड़े कहे गये हैं यथा - कोई एक घड़ा पूर्ण अवयव वाला है अथवा दही आदि से परिपूर्ण है और पूर्ण ही दिखाई देता है । कोई एक घड़ा पूर्ण अवयव वाला है अथवा दही आदि से परिपूर्ण है किन्तु तुच्छ दिखाई देता है । कोई एक घड़ा तुच्छ यानी अपूर्ण अवयव वाला है किन्तु परिपूर्ण की तरह दिखाई देता है । कोई एक घड़ा अपूर्ण अवयव वाला है और तुच्छ दिखाई देता है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष पूर्ण यानी धन से
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