Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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. श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000
तओ णियंठा णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता तंजहा - पुलाए णियंठे सिणाए। तओ णियंठा सण्ण णोसण्णोवउत्ता पण्णत्ता तंजहा - बउसे पडिसेवणा कुसीले कसायकुसीले। तओ सेह भूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा - उक्कोसा मज्झिमा जहण्णा, उक्कोसा छम्मासा, मज्झिमा चउमासा, जहण्णा सत्तराइंदिया। तओ थेरभूमीओ पण्णत्ताओ तंजहा - जाइथेरे, सुयथेरे, परियायथेरे। सट्टिवास जाए समणे णिग्गंथे जाइथेरे, ठाणंगसमवायधरे णं समणे णिग्गंथे सयथेरे, वीसवासपरियाए णं समणे णिग्गंथे परियाव थेरे॥७९॥
कठिन शब्दार्थ - णियंठा - निर्ग्रन्थ, णोसण्णोवउत्ता - नो संज्ञोपयुक्त, पुलाए - पुलाक, सिणाए- स्नातक, सण्ण णोसण्णोवउत्ता- संज्ञा नो संज्ञोपयुक्त, बउसे - बकुश, पडिसेवणाकुसीलेप्रतिसेवना कुशील, कसायकुसीले - कषाय कुशील, सेहभूमिओ - शैक्ष भूमियाँ, सत्तराइंदिया - सात दिन रात, थेरभूमीओ - स्थविर भूमियाँ, जाइथेरे - जाति स्थविर, सुयोरे - श्रुत स्थविर, परियायधेरैपर्याय स्थविर, सट्ठिवास जाए - साठ वर्ष की उम्र वाले, ठाणंगसमवायधरे - ठाणांग समवायांग के अर्थ - को धारण करने वाले, वीसवास परियाए - बीस वर्ष की दीक्षा वाले।
भावार्थ - तीन निर्ग्रन्थ नोसंज्ञोपयुक्त कहे गये हैं अर्थात् वे पहले भोगे हुए आहार आदि का स्मरण और आगामी आहार आदि की चिन्ता नहीं करते हैं। वे ये हैं - पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक। तीन निर्ग्रन्थ संज्ञानोसंज्ञोपयुक्त कहे गये हैं यथा - बकुश, प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील। तीन शैक्षभूमियों कही गई हैं यथा - उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य। उत्कृष्ट छह महीने, मध्यम चार महीने
और जघन्य सात दिन रात। तीन स्थविर भूमियाँ योनी स्थविर पदवियाँ कही गई है यथा - जाति स्थविर, श्रुत स्थविर और पर्याय स्थविर यानी प्रव्रज्या स्थविर । साठ वर्ष की उम्र वाले श्रमण निर्ग्रन्थ जाति स्थविर कहलाते हैं और ठाणाङ्ग और समवायाङ्ग सूत्र के अर्थ को धारण करने वाले श्रमण निर्ग्रन्थ श्रुत स्थविर कहलाते हैं और बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले श्रमण निर्ग्रन्थ प्रव्रण्या स्थविर कहलाते हैं।
विवेचन - ग्रंथ दो प्रकार का है - आभ्यन्तर और बाह्य । मिथ्यात्व आदि आभ्यन्तर ग्रन्थ है और धर्मोपकरण के सिवाय शेष धन धान्यादि बाह्य ग्रन्थ है। इस प्रकार बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थ से जो मुक्त है वह 'निर्ग्रन्थ' कहा जाता है ____संज्ञा में - आहारादि की इच्छा में, पूर्व अनुभव किये हुए (भोगे हुए) आहारादि का स्मरण तथा भविष्य के आहार आदि की चिंता से रहित जीव 'नो संज्ञोपयुक्त' कहलाते हैं। पुलाक, निर्ग्रन्थ और स्नातक नो संज्ञोपयुक्त होते हैं। पुलाक आदि का अर्थ इस प्रकार है - - पुलाक - दाने से रहित धान्य की भूसी को पुलाक कहते हैं। वह निःसार होती है। तप और श्रुत
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