Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक ४
२२७ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
- विनय से पढी हुई विद्या इस लोक तथा पर लोक में फल को देती है और अविनय से ग्रहण की हुई विद्या जल से हीन शस्य (धान्य) की तरह फल को नहीं देती।
तओ मंडलिया पव्वया पण्णत्ता तंजहा - माणुसुत्तरे, कुंडलवरे, रुयगवरे। तओ महतिमहालया पण्णत्ता तंजहा - जंबूहीवे मंदरे मंदरेसु, सयंभुरमणे समुद्दे समुद्देस, बंभलोए कप्पे कप्पेसु॥१११॥
कठिन शब्दार्थ - मंडलिया - माण्डलिक-गोल, पव्वया - पर्वत, माणुसुत्तरे - मानुष्योत्तर पर्वत, कुंडलवरे - कुण्डलवर, रुयगवरे - रुचकवर, महतिमहालया - महति महालय-अति महान् - भावार्थ - तीन पर्वत माण्डलिक यानी गोल कहे गये हैं यथा - पुष्करवर द्वीप में मानुष्योत्तर पर्वत, ग्यारहवें कुण्डल द्वीप में रहा हुआ कुण्डलवर पर्वत और तेरहवें रुचक द्वीप में रहा हुआ रुचकवर पर्वत।
तीन पदार्थ अति महान् कहे गये हैं यथा - सब मेरु पर्वतों में जम्बूद्वीप का मेरु पर्वत बड़ा है क्योंकि दूसरे सभी मेरु पर्वत ८५ हजार से कुछ अधिक ऊंचे हैं और जम्बूद्वीप का चूलिका सहित मेरु पर्वत एक लाख योजन से कुछ अधिक ऊंचा हैं। अर्थात् मेरु पर्वत धरती में एक हजार योजन ऊंड़ा (गहरा) है। ९९ हजार योजन का ऊंचा है और चालीस योजन की उसकी चूलिका है। इस प्रकार सम्पूर्ण मेरु पर्वत एक लाख और चालीस योजन का ऊंचा है। धातकी खण्ड में दो मेरु पर्वत हैं और अर्ध पुष्करवर द्वीप में भी दो मेरु पर्वत हैं। इस प्रकार ये चार मेरु पर्वत ८५ हजार योजन के हैं अर्थात् एक हजार योजन धरती में ऊण्डें हैं और ८४ हजार योजन धरती के ऊपर ऊंचे हैं। इन चारों के भी चूलिकाएं हैं। इस प्रकार ये चारों मेरु पर्वत ८५ हजार योजन से कुछ अधिक ऊंचे हैं। ___सब समुद्रों में स्वयम्भूरमण समुद्र बड़ा है क्योंकि जम्बूद्वीप के मेरुपर्वत से दक्षिण आदि किसी एक दिशा में सब समुद्र पाव राजू से कुछ कम परिमाण वाले हैं और स्वयम्भूरमण समुद्र पाव राजू से कुछ अधिक परिमाण वाला है। सब देवलोकों में पांचवां ब्रह्मदेवलोक बड़ा है क्योंकि उसके पास में लोक का विस्तार पांच राजू परिमाण है। - विवेचन - मानुष्योत्तर पर्वत अर्द्ध पुष्करवर द्वीप को चारों तरफ से घेरा हुआ है। यह मनुष्य क्षेत्र की मर्यादा करता है। इसके आगे असंख्यात द्वीप समुद्र हैं किन्तु किसी में भी मनुष्य नहीं हैं। महतिमहालया - यह जैन सूत्रों का पारिभाषिक शब्द है, जो अति महान् अर्थ को बतलाने में आता है।
- तिविहा कप्पठिई पण्णत्ता तंजहा - सामाइय कप्पठिई, छेओवट्ठावणिय कप्पठिई, णिव्विसमाणकप्पठिई, अहवा तिविहा कप्पठिई पण्णत्ता तंजहा - णिविट्ठ कप्पठिई, जिणकप्पठिई, थेरकप्पठिई॥११२॥
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