Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
गण ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है यथा - शिष्यादि सो सचित्त ऋद्धि, वस्त्र पात्र आदि सो अचित्त ऋद्धि और दोनों मिली हुई सो मिश्र ऋद्धि।
विवेचन - ऋद्धि के तीन भेद हैं - १. देवता की ऋद्धि २. राजा की ऋद्धि और ३. गणि - गच्छ के अधिपति आचार्य की ऋद्धि।
देवता की ऋद्धि के तीन भेद हैं -१. विमानों की ऋद्धि २. विक्रिया करने की ऋद्धि ३. परिचारणा (काम सेवन) की ऋद्धि। अथवा १. सचित्त ऋद्धि - अग्रमहिषी आदि सचित्त वस्तुओं की सम्पत्ति २. अचित्त ऋद्धि-वस्त्र आभूषण की ऋद्धि ३. मिश्र ऋद्धि - वस्त्राभूषणों से अलंकृत देवी आदि की ऋद्धि. ___राजा की ऋद्धि के तीन भेद हैं - १. अतियान ऋद्धि-नगर प्रवेश में तोरण बाजार.आदि की शोभा लोगों की भीड़ आदि रूप ऋद्धि अर्थात् नगर प्रवेश, महोत्सव की शोभा २. निर्याण ऋद्धि - नगर से बाहर जाने में हाथियों की सजावट सामन्त आदि की ऋद्धि ३. राजा के सैन्य वाहन, खजाना और कोठार की ऋद्धि अथवा सचित्त, अचित्त, मिश्र के भेद से भी राजा की ऋद्धि के तीन भेद हैं। ..
- गणि (आचार्य) की ऋद्धि के तीन भेद हैं - १. ज्ञान ऋद्धि - विशिष्ट श्रृत की सम्पदा २. दर्शन ऋद्धि - आगम में शंका आदि से रहित होना तथा प्रवचन की प्रभावना करने वाले शास्त्रों का ज्ञाने ३. चारित्र ऋद्धि - अतिचार रहित शुद्ध उत्कृष्ट चारित्र का पालन करना।
सचित्त, अचित्त और मिश्र के भेद से भी आचार्य की ऋद्धि तीन प्रकार की है - १. सचित्त ऋद्धि-शिष्य आदि २. अचित्त ऋद्धि - वस्त्र आदि ३. मिश्र ऋद्धि - वस्त्र पहने हुए शिष्य आदि।
तओ गारवा पण्णत्ता तंजहा - इडीगारवे रसगारवे सायागारवे। तिविहे करणे पण्णत्ते तंजहा - धम्मिए करणे, अधम्मिए करणे, धर्मियाधम्मिया करणे। तिविहे भगवया धम्मे पण्णत्ते तंजहा - सुअहिग्झिए, सुझाइए, सुतवस्सिए, जया सुअहिग्झियं भवइ तया सुझाइयं भवइ, जया सुज्झाइयं भवइ तया सुतवस्सियं भवइ। से सुअहिल्झेि सुज्झाइए सुतवस्सिए सुयक्खाए णं भगवया धम्मे पण्णत्ते॥११८॥ .
कठिन शब्दार्थ - इड्डी गारवे - ऋद्धि गारव, रसगारवे - रस गारव, सायागारवे - साता गारव, सुअहिझिए - सुअधीत (अच्छा अध्ययन किया हुआ), सुज्झाइए - सुध्यात (अच्छा ध्यान किया हुआ), सुतवस्सिए - सुतप (श्रेष्ठ तप का आचरण किया हुआ)।
भावार्थ - तीन गारव यानी गुरुपना (भारीपना) कहे गये हैं यथा - ऋद्धि गारव, रस गारव और 'साता गारव। तीन प्रकार के करण कहे गये हैं यथा - साधु की क्रिया सो धार्मिक करण, असंयति की क्रिया सो अधार्मिक करण और देशविरति श्रावक की क्रिया सो धार्मिकाधार्मिक करण। भगवान् ने तीन प्रकार का धर्म फरमाया है यथा - सुअधीत यानी गुरु के पास विनयपूर्वक पढा हुआ ज्ञान, सुध्यात यानी
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