Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक ३ 000000000000000000000000000000000000000000000000000
१. पांच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत एवं अन्य त्याग प्रत्याख्यान अंगीकार करना पहला विश्राम है।
२. सामायिक देशावकासिक व्रतों का पालन करना तथा अन्य ग्रहण किये हुए व्रतों में रखी हुई मर्यादा का प्रतिदिन संकोच करना एवं उन्हें सम्यक् प्रकार से पालन करना दूसरा विश्राम स्थान है।
३. अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन प्रतिपूर्ण पौषध व्रत का सम्यक् प्रकार पालन करना तीसरा विश्राम स्थान है।
४. अन्त समय में संलेखना अंगीकार कर आहार पानी का त्याग कर, निश्चेष्ट रहते हुए मरण की इच्छा न करते हुए रहना चौथा विश्राम स्थान है।
उदय-अस्त चौभंगी चत्तारि पुरिसजाया पण्णना तंजहा - उदिओदिए णाममेगे, उदियत्थमिए णाममेगे, अत्यमिओदिए णाममेगे, अत्थमियत्थमिए णाममेगे, भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टी णं उदिओदिए, बंभदत्ते ण राया चाउरंतचक्कवट्टी उदियथमिए, हरिएसबले णं अणगारे अत्यमिओदिए, काले णं सोयरिए अत्थमियत्थमिए।
युग्म भेद । __ चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता तंजहा - कडजुम्मे, तेओए, दावरजुम्मे, कलिओए । णेरइयाणं चत्तारि जुम्मा पण्णत्ता तंजहा- कडजुम्मे, तेओए, दावरजुम्मे, कलिओए । एवं असुरकुमाराणं जाव थणियकुमाराणं, एवं पुढविकाइयाणं आउकाइयाणं तेउकाइयाणं वाउकाइयाणं वणस्सइकाइयाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं मणुस्साणं वाणमंतर जोइसियाणं वेमाणियाणं सव्वेसिं जहा णेरइयाणं ।
चार प्रकार के शूर, कुल और मानव लेश्याएं चत्तारि सूरा पण्णत्ता तंजहा - खंतिसूरे, तवसूरे, दाणसूरे, जुद्धसूरे । खंतिसूरा अरिहंता, तवसूरा अणगारा, दाणसूरे वेसमणे, जुद्धसूरे वासुदेवे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता. तंजहा - उच्चे णाममेगे उच्चच्छंदे, उच्चे णाममेगे णीयच्छंदे, णीए णाममेगे उच्वच्छंदे, णीए णाममेगे णीयच्छंदे। असुरकुमाराणं चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओ तंजहा - कण्हलेस्सा, णीललेस्सा, काउलेस्सा, तेउलेस्सा ।
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