Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
तणुओ तणुयग्गीवो, तणुयतओ तणुयदंतणहवालो । भीरू तत्थुव्विग्गो, तासी य भवे मिए णामं ॥ ३ ॥
सिं हत्थीणं थोवं थोवं उ जो हरइ हत्थी ।
रूवेण व सीलेण व सो संकिण्णो त्ति णायव्वो ॥ ४ ॥ भद्दो मज्जइ सरए, मंदो उण मज्जए वसंतम्मि ।
मिउ मज्जइ हेमंते, संकिण्णो सव्वकालम्मि ॥ ५ ॥ १४८ ॥ कठिन शब्दार्थ - हत्थी - हाथी, भद्दे भद्र - धीरता आदि गुण युक्त, मंदे - मंद, मिए - मृगहल्कापन, डरपोकपना आदि गुणों से युक्त, संकिण्णे - संकीर्ण (सब गुणों का सम्मिलित रूप), महुगुलिय- मधु गुटिका, पिंगलक्खो - पीली आंखों वाला, अणुपुव्वसुजाय दीह लंगूलो - अनुक्रम से अपनी जाति के अनुसार बल और रूपादि से युक्त दीर्घ पूंछ वाला, पुरओ सामने, उदग्गधीरो - उन्नत कुंभ स्थल वाला धीर, सव्वंग समाहिओ - सर्वांगं समाहित सब अंग लक्षण युक्त और प्रमाणोपेत, चल बहल - फूली हुई और मोटी, विसम चम्मो - विषम चमड़ी वाला, थूल सिरो- स्थूल (मोटे ) मस्तक वाला, थूल णह दंत वालो स्थूल, नख, दांत और बाल वाला, हरिपिंगल - सिंह के समान पीली, लोयणो- लोचन (आँखें), तणुओ- तनुक- दुर्बल शरीर वाला, तणुयग्गीवो - तनुक ग्रीव-छोटी गर्दन वाला, भीरू - डरपोक, तत्थ - त्रस्त, उव्विग्गो - उद्विग्न, थोवं थोवं - थोड़े थोड़े, मज्जइ मद को प्राप्त होता है, सरए शरद ऋतु में, वसंतम्मि हेमंत ऋतु में, सव्वकालम्मि - सर्व काल - सब समय में ।
वसन्त ऋतु में, हेमंते
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'भावार्थ- चार प्रकार के हाथी कहे गये हैं । यथा - भद्र यानी धीरता आदि गुण युक्त, मन्द यानी धैर्य, वेग आदि गुणों में मन्द, मृग बानी हल्कापना, डरपोकपना आदि गुणों से युक्त और संकीर्ण यानी कुछ भद्रता आदि गुणों से युक्त । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - भद्र, मन्द, मृग और संकीर्ण । अब आगे (१) भद्र शब्द के साथ भद्र मन, मन्द मन, मृग मन और संकीर्ण मन की चौभङ्ग, (२) मन्द शब्द के साथ भद्र मन, मन्द मन, मृग मन और संकीर्ण मन की चौभङ्गी, (३) मृग शब्द के साथ भद्र मन, मन्द मन, मृग मन और संकीर्ण मन की चौभङ्गी, (४) संकीर्ण शब्द के साथ भद्र मन, मन्द मन, मृग मन और संकीर्ण मन की चौभङ्गी, इस प्रकार हाथी का दृष्टान्त देकर चार चौङ्गयाँ बतलाई गई हैं और पुरुष दान्तिक के साथ उन्हें घटाई गई हैं।
चार प्रकार के हाथी कहे गये हैं । यथा कोई एक हाथी जाति और आकार आदि से भद्र और भद्रमन यानी मन का भी भद्र, कोई एक हाथी जाति और आकार आदि से भद्र और मन का मन्द अर्थात् धैर्य रहित, कोई एक हाथी जाति आदि से भद्र और मन का मृग यानी मृग के समान डरपोक, कोई एक
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