Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
स्थान ४ उद्देशक ३
णो विजोयावइत्ता, विजोयावइत्ता णाममेगे णो जोयावइत्ता, एगे जोयावइत्ता वि विजोयावइत्ता वि, एगे णो जोयावइत्ता णो विजोयावइत्ता । चत्तारि हया पण्णत्ता तंजहा - जुत्ते णाममगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - जुत्ते णाममगे जुत्ते, जुत्ते णाममगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते । एवं जुत्तपरिणए, जुत्तरूवे, जुत्तसोभे, सव्वेसिं पडिवक्खो पुरिसजाया । चत्तारि गया पण्णत्ता तंजहाजुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममंगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते । एवं जहा हयाणं तहा गयाणं वि भाणियव्वं, पडिवक्खो तहेव पुरिसजाया॥१६८॥
कठिन शब्दार्थ - जाणा - यान-गाड़ी आदि, जुत्ते - बैल आदि से युक्त, अजुत्ते - अयुक्त, जुत्तपरिणए - युक्त परिणत, अजुत्त परिणए - अयुक्त परिणत, जुत्तसोभे - शोभा युक्त, अजुत्तसोभेशोभा युक्त महीं, जुग्गा - युग्य-सवारी, सारहि - सारथि, जोयावइत्ता - जोतता है, विजोयावइत्ता - छोड़ता है, पडिवक्खो - प्रतिपक्ष । . भावार्थ - चार यान यानी गारी आदि कहे गये हैं यथा - कोई एक यान बैल आदि से युक्त होते हैं और उचित सामग्री से भी युक्त होते हैं । कोई एक यान बैल आदि से युक्त होते हैं किन्तु सामग्री आदि से युक्त नहीं होते हैं। कोई एक यान बैल आदि से युक्त नहीं होते हैं किन्तु सामग्री आदि से युक्त होते हैं। कोई एक यान बैल आदि से युक्त नहीं होते हैं और सामग्री आदि से भी युक्त नहीं होते हैं । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष धनादि से युक्त होता है और उचित अनुष्ठान से युक्त होता है अर्थात् दानादि में धन का व्यय करता है एवं धर्मध्यान आदि करता है । कोई एक पुरुष धनादि से युक्त होता है किन्तु उचित अनुष्ठान से युक्त नहीं होता है । कोई एक पुरुष धनादि से युक्त नहीं है किन्तु उचित अनुष्ठान से युक्त नहीं होता। कोई एक पुरुष धनादि से युक्त नहीं होता है .
और उचित अनुष्ठान आदि से भी युक्त नहीं होता है । अथवा इस चौभङ्गी का दूसरी तरह से भी अर्थ किया जा सकता है । यथा - द्रव्यलिङ्ग से युक्त और भावलिङ्ग से भी युक्त, जैसे साधु । द्रव्यलिङ्ग से युक्त किन्तु भावलिङ्ग से अयुक्त, जैसे निह्नव आदि । द्रव्यलिङ्ग से अयुक्त किन्तु भावलिङ्ग से युक्त, जैसे प्रत्येक बुद्ध आदि । द्रव्यलिङ्ग से भी अयुक्त और भावलिङ्ग से भी अयुक्त, जैसे गृहस्थ आदि । - चार यान कहे गये हैं यथा - कोई एक यान बैल आदि से युक्त होता है और युक्त परिणत यानी श्रेष्ठ सामग्री को अपने अनुकूल किये हुए होता है । कोई एक यान युक्त होता है किन्तु युक्त परिणत
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org