Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ४ उद्देशक २ 000000000000
सेना और साधक
चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ तंजहां- जइत्ता णाममेगा णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगा णो जड़त्ता, एगा जड़त्ता वि पराजिणित्ता वि, एगा णो जइत्ता णो पराजिणित्ता । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा जड़त्ता णाममेगे णो पराजिणित्ता, पराजिणित्ता णाममेगे णो जइत्ता, एगे जइत्ता वि पराजिणित्ता वि, एगे णो जइत्ता णो पराजिणित्ता । चत्तारि सेणाओ पण्णत्ताओ तंजहा - जइत्ता णाममेगा जयइ, जइत्ता णाममेगा पराजिणइ, पराजिणित्ता णाममेगा जयइ, पराजिणित्ता णाममेगा पराजिइ । एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा जइत्ता णाममेगे जयइ, जइत्ता णाममेगे पराजिणइ, पराजिणित्ता णाममेगे जयइ, पराजिणित्ता णाममेगे पराजिइ ॥ १५४ ॥
कठिन शब्दार्थ - संपागड पडिसेवी संप्रकट प्रतिसेवी - प्रत्यक्ष दोष का सेवन करने वाला, पच्छण्ण पडिसेवी - प्रच्छन्न प्रतिसेवी गुप्त रूप से दोष का सेवन करने वाला, पडुप्पणणंदी - प्रत्युत्पन्ननंदीं-मिलने पर प्रसन्न होने वाला, णिस्सरणणंदी- निकल जाने पर प्रसन्न होने वाला, सेणाओसेना, जइत्ता - जीतकर पराजिणित्ता पराजित होकर ।
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भावार्थ - चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा - कोई एक साधु प्रत्यक्ष में दोष का सेवन करे, कोई एक साधु गुप्त रूप से दोष का सेवन करता है, कोई एक साधु शिष्य, आचार्य आदि के मिलने पर प्रसन्न होता है और कोई एक साधु गच्छ में से निकल जाने पर प्रसन्न होता है।
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चार प्रकार की सेना कही गई है । यथा कोई सेना शत्रुसेना को जीतती है किन्तु उससे पराजित नहीं होती, कोई सेना शत्रुसेना से पराजित हो जाती है किन्तु उसे जीतती नहीं, कोई सेना शत्रुसेना को जीतती भी है और अवसर देख कर उससे पराजित होकर भाग जाती है, एक सेना न तो शत्रुसेना को जीतती है और न शत्रुसेना से पराजित होती है । इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं । यथा कोई साधु परीषों को जीतता है किन्तु परीषहों से पराजित नहीं होता है, जैसे महावीर स्वामी, कोई साधु परीषहों से पराजित जाता है किन्तु उनको जीतता नहीं है, जैसे कण्डरीक । कोई साधु परीषहों को जीतता है और कारण विशेष से उनसे पराजित भी होता है, जैसे शैलक राजर्षि । किसी साधु को परीषह उत्पन्न नहीं होते इसलिए वह न तो उनको जीतता है और न उनसे पराजित होता है । चार प्रकार की सेना कही गई है । यथा कोई सेना एक बार शत्रु सेना को जीत कर फिर भी शत्रुसेना को जीतती है, एक सेना शत्रुसेना को एक बार जीतती है किन्तु दुबारा उससे पराजित हो जाती है । कोई सेना एक
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