Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 403
________________ श्री स्थानांग सूत्र *********00 गृद्ध, क्रोध को शान्त न करने वाला यानी क्रोधी और मायावी कपटी । चार पुरुष वाचना देने के योग्य कहे गये हैं यथा - विनीत, विगयों में अनासक्त, क्रोधरहित और माया कपट रहित । विवेचन - शिष्य को सूत्र अर्थ का पढ़ाना वाचना है । चार व्यक्ति वाचना के पात्र कहे गये हैं.१. विनीत २. विगयों में आसक्ति नहीं रखने वाला ३. क्रोध को शान्त करने वाला और ४. अमायी माया- कपट नहीं करने वाला । चार व्यक्ति वाचना के अयोग्य हैं १. अविनीत २. विगयों में आसक्ति रखने वाला ३. अशान्त (क्रोधी) और ४. मायावी (छल करने वाला) । - ३८६ अनेक दृष्टियों से पुरुष भेद चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आयंभरे णाममेगे णो परंभरे, परंभरे णाममेगे णो आयंभरे, एगे आयंभरे वि परंभरे वि, एगे णो आयंभरे णो परंभरे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - दुग्गए णाममेगे दुग्गए, दुग्गए णाममेगे सुग्गए, सुग्गए णाममेगे दुग्गए, सुग्गए णाममेगे सुग्गए । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजा - दुग्गए णाममेगे दुव्वएं, दुग्गए णाममेगे सुव्वए, सुग्गए णाममेगे दुव्वए, सुग्गए णाममेगे सुव्वए । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा दुग्गए णामगे दुप्पडियाणंदे, दुग्गए णाममेगे सुप्पडियाणंदे, सुग्गए णाममेगे दुष्पडियाणंदे, सुग्गए णाममेगे सुप्पडियाणंदे। चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा- दुग्गए णाममेगे दुग्गड़गामी, दुग् णाममेगे सुग्गड़गामी, सुग्गए णाममेगे दुग्गइगामी, सुग्गए णाममेगे सुग्गइगामी । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा- दुग्गए णाममेगे दुग्गइं गए, दुग्गए णाममेगे सुगईं गए, सुग्गए णाममेगे दुग्गइं गए, सुग्गए णाममेगे सुगई गए । चत्तारि पुरिजाया पण्णत्ता तंजहा - तमे णाममेगे तमे, तमे णाममेगे जोई, जोई णाममेगे तमे, जोई णाममेगे जोई। चत्तारि पुरिजाया पण्णत्ता तंजहा - तमे णाममेगे तमबले, तमे णाममेगे जोइबले, जोई णाममेगे तमबले, जोई णाममेगे जोइबले । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - तमे णाममेगे तमबलपलज्जणे, तम णाममेगे जोइबलपलज्जणे, जोई णाममेगे तमबलपलज्जणे, जोईं णाममेगे जोइबलपलज्जणे 'चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा- परिण्णायकम्मे णाममेगे णो परिण्णायसणे, परिण्णासणे णाममेगे णो परिण्णायकम्मे, एंगे परिण्णाय कम्मे वि परिण्णायसणे वि, एगे णो परिण्णायकम्मे णो परिष्णायसण्णे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता Jain Education International - For Personal & Private Use Only - www.jainelibrary.org

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