Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक २
परलोगपडिबुद्धा - परलोक प्रतिबद्धा, दुहओपडिबद्धा - उभय प्रतिबद्धा, पुरओ - पुरतः, मग्गओ - मार्गतः यावत्ता - पीड़ा उत्पन्न करके, पुयावइत्ता एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा कर, बुयावइत्ता - बातचीत करके, ओवायपव्वज्जा अवपात प्रव्रज्या अक्खाय पव्वएज्जा
आख्यात
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प्रव्रज्या, संगारपव्वज्जा - संकेत प्रव्रज्या ।
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भावार्थ - तीन प्रकार की बोधि कही गई है यथा ज्ञान बोधि, दर्शन बोधि और चारित्र बोधि । तीन प्रकार के बुद्ध कहे गये हैं यथा - ज्ञान बुद्ध, दर्शन बुद्ध और चारित्र बुद्ध । इसी प्रकार मोह तीन प्रकार का कहा गया है यथा - ज्ञान मोह, दर्शन मोह और चारित्र मोह । इसी प्रकार मूढ भी तीन प्रकार के कहे गये हैं, यथा • ज्ञान मूढ, दर्शन मूढ और चारित्र मूढ । तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है यथाइस लोक के सुख के लिए प्रव्रज्या यानी दीक्षा लेना सो इहलोक प्रतिबद्धा, परलोक में देवादि के कामभोगों की प्राप्ति के लिए प्रव्रज्या लेना सो परलोक प्रतिबद्धा और इस लोक और परलोक दोनों के सुख की प्राप्ति की इच्छा से दीक्षा लेना सो उभय लोक प्रतिबद्धा प्रव्रज्या कहलाती है। तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई हैं यथा पुरतः प्रतिबद्धा यानी दीक्षा लेकर शिष्यादि के मोह में बंधा रहना, मार्गतः प्रतिबद्धा यानी दीक्षा लेकर अपने पूर्व कुटुम्बीजन एवं स्वजन आदि के मोह में बंधा रहना और उभय प्रतिबद्धा यानी शिष्य और स्वजनादि दोनों के मोह में बंधे रहना। तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है यथा - किसी को शारीरिक मानसिक पीड़ा उत्पन्न करके दीक्षा ग्रहण करवाना जैसे मेतार्य को देव ने पीड़ा उत्पन्न करके दीक्षा ग्रहण करवाई थी। एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाकर दीक्षा देना, जैसे कि आर्यरक्षित को दी गई। उसके साथ बातचीत करके दीक्षा देना, जैसे कि गौतमस्वामी ने किसान को दीक्षा दी थी। तीन प्रकार की प्रव्रज्या कही गई है यथा अवपात प्रव्रज्या यानी दीक्षा लेकर मैं गुरु की सेवा करूँगा, इस विचार से दीक्षा लेना, आख्यात प्रव्रज्या यानी धर्मदेशना देकर फिर दीक्षा लेना, जैसे कि फल्गुरक्षित ने अपने कुटुम्बी जनों को धर्मदेशना देकर फिर दीक्षा ली थी और संकेत प्रव्रज्या यानी पहले किये संकेत के अनुसार दीक्षा लेना अथवा यदि तुम दीक्षा लोगे तो मैं भी दीक्षा लूँगा ।
विवेचन - बोधि अर्थात् - सम्यग् बोध, यथार्थ बोध । यहां चारित्र बोधि का फल होने से बोध, कहा गया है। अथवा जीव का उपयोग रूप होने से चारित्र बोधिरूप है। बोधि विशिष्ट पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं- ज्ञान बुद्ध, दर्शन बुद्ध, चारित्र बुद्ध । इसी प्रकार से मोक्ष और मूढ भी तीन प्रकार के कहे हैं।
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प्रव्रज्या
प्रव्रजन-गमन यानी पाप से (पाप को छोड़कर) चारित्र व्यापारों की ओर जाना प्रव्रज्या है । इहलोक प्रतिबद्ध दीक्षा ऐहिक भोजन आदि कार्य के अर्थियों को होती है। परलोक प्रतिबद्ध दीक्षा आगामी आने वाले जन्म में काम आदि की इच्छा वाले को होती है और द्विधा प्रतिबद्ध - इहलोक और परलोक प्रतिबद्ध दीक्षा उभयार्थी को होती है।
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