Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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२९४.
श्री स्थानांग सूत्र
नौकर। उच्चता भृतक यानी नियमित समय के लिए कार्य करने वाला नौकर और कब्बाडभृतक यानी इतनी जमीन खोदने पर इतने पैसे मिलेंगे इस प्रकार ठेके पर काम करने वाला ओड आदि । चार प्रकार. के लोकोत्तर पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई साधु कारण विशेष से अकल्पनीय आहार आदि का प्रकटपने सेवन करता है किन्तु प्रच्छन्न यानी गुप्त रूप से सेवन नहीं करता । कोई साधु गुप्त रूप से सेवन करता है किन्तु प्रकट रूप में सेवन नहीं करता । कोई साधु प्रकट रूप में भी सेवन करता है और गुप्तरूप में भी सेवन करता है और कोई साधु न तो प्रकट रूप में सेवन करता है और न गुप्त रूप से सेवन करता है।
विवेचन - हास्य मोहनीय कर्म के उदय से उत्पन्न हास्य रूप विकार अर्थात् हंसी की उत्पत्ति चार प्रकार से होती है - १. दर्शन से २. भाषण से ३. श्रवण से और ४. स्मरण से ।
१. दर्शन - विदूषक, बहुरूपिये आदि की हंसीजनक चेष्टा, देख कर हंसी आ जाती है। . २. भाषण - हास्य उत्पादक वचन कहने से हंसी आती है । ३. श्रवण - हास्य जनक किसी का वचन सुनने से हंसी की उत्पत्ति होती है। .... ४. स्मरण - हंसी के योग्य कोई बात या चेष्टा को याद करने से हंसी उत्पन्न होती है ।
अग्रमहिषियाँ चमरस्स णं असुरिंदस्स असुरकुमाररण्णो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - कणगा, कणगलया, चित्तगुत्ता, वसुंधरा । एवं जमस्स, वरुणस्स, वेसमणस्स । बलिस्स णं वइरोयणिंदस्स वइरोयणरो सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - मित्तगा, सुभद्दा, विज्जुया, असणी । एवं जमस्स, वेसमणस्स, वरुणस्स ।धरणस्स णं णागकुमारिदस्स णागकुमार रण्णो कालवालस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - असोगा, विमला, सुप्पभा, सुदंसणा, एवं जाव संखवालस्स । भूयाणंदस्स णं णागकुमारिंदस्स णागकुमार रण्णो कालवालस्स महारण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - सुणंदा, सुभद्दा, सुजाया, सुमणा, एवं जाव सेलवालस्स । जहा धरणस्स एवं सव्वेसिं दाहिणिंदलोगपालाणं जाव घोसस्स जहा भूयाणंदस्स एवं जाव महाघोसस्स लोगपालाणं । कालस्सणं पिसाइंदस्स पिसायरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसणा, एवं महाकालस्स वि । सुरुवस्स णं भूइंदस्स भूयरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ तंजहा - रूववई, बहुरूवा,
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