Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 लेना चाहिए। देवों के राजा, देवों के इन्द्र शक्र की तीन परिषदाएं कही गई हैं यथा - समिता, चण्डा
और जाया। इस प्रकार जैसा चमरेन्द्र का अधिकार कहा वैसा ही शक्रेन्द्र के लोकपाल त्रायस्त्रिंशक यावत् अग्रमहिषियों तक जानना चाहिए और इसी प्रकार अच्युतेन्द्र, उसके सामानिक यावत् लोकपाल देवों तक सारा अधिकार कह देना चाहिए।
तओ जामा पण्णत्ता तंजहा - पढमे जामे मज्झिमे जामे पच्छिमे जामे। तिहिं. जामेहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज सवणयाए तंजहा - पढमे जामे मज्झिमे जामे पच्छिमे जामे। एवं जाव केवलणाणं उप्पाडेज्जा पढमे जामे मज्झिमे जामे पच्छिमे जामे। तओ वया पण्णत्ता तंजहा - पढमे वए मज्झिमे वए पच्छिमें वए। तिहिं वएहिं आया केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज सवणयाए तंजहा - पढमे वए मज्झिमे वए पच्छिमे वए, एसो चेव गमोणेयव्यो जाव केवलणाणं ति॥७७॥
कठिन शब्दार्थ - जामा - याम (पहर), पच्छिमे - अंतिम, वया - वय (उम्र), वएहिं - अवस्थाओं में।
भावार्थ - तीन याम यानी पहर कहे गये हैं यथा - प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम। प्रथम याम, मध्यम याम और अन्तिम याम इन तीन यामों में आत्मा केवलिभाषित धर्म को श्रवण कर सकता है और यावत् केवलज्ञान उत्पन्न कर सकता है। तीन वय यानी उम्र कही गई है यथा - प्रथम वय , यानी बाल्यावस्था, मध्यम वय यानी युवावस्था और अन्तिम वय यानी वृद्धावस्था। इसी तरह प्रथम वय, मध्यम वय और अन्तिम वय इन तीनों अवस्थाओं में आत्मा केवलिभावित धर्म श्रवण कर सकता है यावत् केवलज्ञान उत्पन्न कर सकता है, यह सारा अधिकार जान लेना चाहिए।
विवेचन - दिन और रात के चार चार प्रहर होते हैं किन्तु यहाँ प्रातः, मध्याह्न और सन्ध्या तथा पूर्व रात्रि, मध्यम रात्रि और अंतिम रात्रि, इन तीन की विवक्षा की गयी है। ..
तिविहा बोही पण्णत्ता तंजहा - णाण बोही दंसण बोही चरित्त बोही। तिविहा बुद्धा पण्णत्ता तंजहा - णाणबुद्धा, सणबुद्धा चरित्तबुद्धा, एवं मोहे मूढा। तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता तंजहा - इहलोग पडिबद्धा, परलोग पडिबद्धा, दुहओ पडिबद्धा। तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता तंजहा - पुरओ पडिबद्धा, मग्गओ पडिबद्धा, दुहओ पडिबद्धा।तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता तंजहा-तुयावइत्ता पुयावइत्ता बुयावइत्ता।तिविहा पव्वज्जा पण्णत्ता तंजहा - ओवायपव्वज्जा अक्खायपव्वज्जा संगारपव्वज्जा। ७८ । __ कठिन शब्दार्थ - बोही - बोधि, पव्वजा - प्रव्रज्या, इहलोगपडिबद्धा - इहलोक प्रतिबद्धा
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