Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 438
________________ ४२१ स्थान ४ उद्देशक ४ 000000000000000000000000000000000000000000000000000 णाममेगे अणिक्कट्ठप्पा, अणिक्कडे णाममेगे णिक्कट्ठप्पा, अणिक्कट्ठे णाममेगे अणिक्कटुप्पा । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - बुहे णाममेगे बुहे, बुहे णाममेगे अबुहे, अबुहे णाममेगे बुहे, अबुहे णाममेगे अबुहे । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - बुहे णाममेगे बुहहियए, बुहे णाममेगे अबुहहियए अबुहे णाममेगे बुहहियए, अबुहे णाममेगे अबुहहियए । चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता तंजहा - आयाणुकंपए णाममेगे णो पराणुकंपए, पराणुकंपए णाममेगे णो आयाणुकंपए एगे आयाणुकंपए वि पराणुकंपए वि, एगे णो आयाणुकंपए णो पराणुकंपए॥१९२॥ .... ___ कठिन शब्दार्थ - णिवइत्ता - निपतिता-गिरने वाला, परिवइत्ता - परिव्रजिता-उड़ सकने वाला,, णिक्कठे - निकृष्ट-दुर्बल, अणिक्कट्ठे - अनिकृष्ट-दुर्बल नहीं, णिक्कटुप्पा - निकृष्ट (अर्थात् जिसने कषायों को मन्द कर दिया है) आत्मा.वाला-अर्थात् विशुद्ध आत्मा वाला, अणिक्कट्ठप्पा - अविशुद्ध आत्मा वाला, बुहे - बुद्ध-पण्डित; अबुहे - अबुद्ध-अपण्डित, बुहहियए - बुद्ध हृदय-विवेक युक्त हृदय वाला, अबुहहियए - अबुद्ध हृदय-विवेक रहित हृदय वाला, आयाणुकंपए - आत्मानुकंपक-अपनी अनुकम्पा करने वाला, पराणुकंपए - परानुकम्पक-दूसरे की अनुकम्पा करने वाला। भावार्थ - चार प्रकार के पक्षी कहे गये हैं । यथा - कोई एक पक्षी अपने घोंसले से बाहर निकल सकता है किन्तु उड़ नहीं सकता। कोई एक पक्षी उड़ सकता है किन्तु डरपोक होने से अपने घोंसले से बाहर नहीं निकलता है। कोई एक पक्षी अपने घोंसले से निकल भी सकता है और उड़ भी सकता है । कोई एक पक्षी न तो निकल सकता है और न उड़ सकता है । इसी तरह चार प्रकार के भिक्षुक कहे गये हैं। यथा - कोई एक भिक्षुक भिक्षा लेने को जाने में समर्थ है किन्तु परिभ्रमण करने में समर्थ नहीं है। कोई एक भिक्षुक परिभ्रमण करने में समर्थ है किन्तु सूत्रार्थ में लगा हुआ होने के कारण भिक्षा के लिए जा नहीं सकता है । कोई एक भिक्षुक भिक्षा के लिए जाने में समर्थ भी है और परिभ्रमण भी कर सकता है। कोई एक भिक्षुक भिक्षा के लिए जा भी नहीं सकता है और परिभ्रमण भी नहीं कर सकता है। चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - कोई एक साधु तप करने से शरीर से दुर्बल है और कषाय न होने से भाव से भी दुर्बल है। कोई एक साधु तप करने से शरीर से तो दुर्बल है किन्तु कषायों का क्षयोपशम न होने से भाव से दुर्बल नहीं है। कोई एक साधु शरीर से दुर्बल नहीं है किन्तु कषायों का क्षयोपशम होने से भाव से दुर्बल है। कोई एक साधु शरीर से भी दुर्बल नहीं है और भाव से भी दुर्बल नहीं है । चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं। यथा - कोई एक साधु तपस्या से.दुर्बल शरीर वाला है और कषाय का क्षय करने से विशुद्ध आत्मा वाला है। कोई एक साधु तप से दुर्बल शरीर वाला है किन्तु भाव से अविशुद्ध आत्मा वाला है। कोई एक साधु दुर्बल शरीर वाला नहीं है किन्तु विशुद्ध आत्मा वाला है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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