Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 तिविहे पण्णत्ते तंजहा - देसच्चाई, णिरालंबणया, णाणापेजदोसे। अण्णाणे तिविहे पण्णत्ते तंजहा - देस अण्णाणे सव्वअण्णाणे भाव अण्णाणे॥९७॥
· कठिन शब्दार्थ - मिच्छत्ते - मिथ्यात्व, अकिरिया - अक्रिया, अविणए - अविनय, अण्णाणेअज्ञान, पओगकिरिया - प्रयोग क्रिया, समुदाण किरिया - समुदान क्रिया, मइअण्णाणकिरियां - मतिअज्ञान क्रिया, सुय अण्णाणकिरिया - श्रुत अज्ञान क्रिया, विभंग अण्णाण किरिया - विभंग अज्ञान क्रिया, देसच्चाई - देश त्यागी, णिरालंबणया - निरालम्बनता, अण्णाणे - अज्ञान। .. ___भावार्थ - तीन प्रकार का मिथ्यात्व कहा गया हैं। यथा - अक्रिया, अविनय और अज्ञान । अक्रिया यानी अशोभन क्रिया तीन प्रकार की कही गई है। यथा - प्रयोग क्रिया, समुदान क्रिया और अज्ञान क्रिया। प्रयोग क्रिया तीन प्रकार की कही गई हैं। यथा - मनप्रयोग क्रिया, वचन प्रयोग क्रिया कायप्रयोग क्रिया। समुदान क्रिया तीन प्रकार की कही गई है। यथा - अनन्तरसमुदान क्रिया, परम्परा समुदान क्रिया और तदुभयसमुदान क्रिया यानी अनन्तरपरम्पर समुदान क्रिया। अज्ञान क्रिया तीन प्रकार की कही गई है। यथा - मतिअज्ञान क्रिया, श्रुतअज्ञान क्रिया और विभङ्ग अज्ञान क्रिया। अविनय तीन प्रकार का कहा गया है। यथा - देशत्यागी यानी जन्मक्षेत्र को छोड़ कर वहाँ के स्वामी को गाली आदि देना। निरालम्बनता यानी आश्रय देने वाले की अपेक्षा न करना और नाना प्रकार के राग द्वेष के वंश होकर अविनय करना। अज्ञान तीन प्रकार का कहा गया है। यथा - देश अज्ञान यानी विवक्षित द्रव्य के देश को न जानना, सर्वथा न जानना सो सर्व-अज्ञान और पर्याय रूप से न जानना भावअज्ञान।
विवेचन - मोहवश तत्त्वार्थ में श्रद्धा न होना या विपरीत श्रद्धा होना मिथ्यात्व है। जैसा कि कहा हैअदेवे देवबुद्धिर्या, गुरुधीरगुरौ च या। अधर्मे धर्म बुद्धिश्च, मिथ्यात्वं तद् विपर्ययात्॥(मिथ्यात्वं तन्निगद्यते)
अर्थ - देव अर्थात् ईश्वर राग द्वेष रहित होता है किन्तु रागी-द्वेषी को देव (ईश्वर) मानना, पाँच महाव्रतधारी एवं पांच समिति तीन गुप्ति से युक्त गुरु होता है किन्तु इन गुणों से रहित को गुरु मानना, अहिंसा, संयम और तप धर्म है किन्तु हिंसादि में धर्म मानना। इस प्रकार अदेव में देव, अगुरु में गुरु और अधर्म में धर्म बुद्धि रखना मिथ्यात्व हैं । विपरीतता के कारण यह मिथ्यात्व कहलाता है।
यहाँ तीन अज्ञान क्रियाओं में विभंग अज्ञान क्रिया कही हैं। अवधिज्ञान का विपरीत विभंग शब्द है। इसलिए "अवधि अज्ञान" के स्थान पर "विभंग ज्ञान" शब्द का प्रयोग कर दिया जाता है। विभंग द्वार की गयी क्रिया अज्ञान क्रिया कहलाती है। प्रस्तुत सूत्र में अज्ञान क्रिया का वर्णन होने से यहाँ पर अज्ञान शब्द क्रिया का विशेषण है। अतः विभंग अज्ञान क्रिया कहा है।
तिविहे धम्मे पण्णत्ते तंजहा-सुयधम्मे, चरित्तधम्मे, अत्थिकायधम्मे। तिविहे उवक्कमे पण्णत्ते तंजहा - धम्मिए उवक्कमे, अधम्मिए उवक्कमे, धम्मियाधम्मिए
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