Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र 000000000000000000000000000000000000000000000000000 इन्द्रों के लोकपालों के नाम होते हैं । अर्थात् तीसरे सनत्कुमार, पांचवें ब्रह्मलोक, सातवें शुक्र . नवें दसवें देवलोक के इन्द्र प्राणत, इन चार इन्द्रों के प्रत्येक के लोकपालों के नाम ये हैं - सोम, यम, वरुण और वैश्रमण । चौथे माहेन्द्र, छठे लान्तक, आठवें सहस्रार और ग्यारहवें बारहवें देवलोक के इन्द्र अच्युत, इन चार इन्द्रों के प्रत्येक के लोकपालों के नाम ये हैं - सोम, यम, वैश्रमण और वरुण । ___चार प्रकार के वायुकुमार देव कहे गये हैं । यथा - काल, महाकाल, वेलम्ब और प्रभञ्जन, ये चारों देव पाताल कलशों के स्वामी हैं । चार प्रकार के देव कहे गये हैं । यथा - भवनवासी, वाणव्यन्तर ज्योतिषी और विमानवासी यानी वैमानिक देव ।
___चार प्रकार का प्रमाण कहा गया है । यथा - द्रव्य प्रमाण जिससे जीवादि द्रव्यों का परिमाण किया जाय । क्षेत्र प्रमाण, जिससे आकाश का परिमाण जाना जाय । काल प्रमाण, जिससे समय आवलिका आदि काल का विभाग जाना जाय और भाव प्रमाण, जिससे जीव के गुण, ज्ञान, दर्शन, चारित्र का तथा नैगमादि नय और संख्या आदि का ज्ञान किया जाय वह भावप्रमाण है। - विवेचन - दक्षिण दिशा के इन्द्र के लोकपालों में जो तीसरा नाम है वह उत्तर दिशा के इन्द्र के लोकपालों में चौथा होता है और जो चौथा नाम है वह तीसरा होता है ।
दिक्कुमारियों, विद्युतकुमारियाँ । ___चत्तारि दिसाकुमारि महत्तरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - रूया, संयंसा, सुरूवा, ख्यावई । चत्तारि विज्जुकुमार महत्तरियाओ पण्णत्ताओ तंजहा - चित्ता, चित्तकणगा, सतेरा, सोयामणी।
मध्यम परिषद् के देवों की स्थिति, संसार भेद सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो मझिम परिसाए देवाणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । ईसाणस्स देविंदस्स देवरण्णो मझिम परिसाए देवीणं चत्तारि पलिओवमाई ठिई पण्णत्ता । चउविहे संसारे पण्णत्ते तंजहा - दव्वसंसारे, खेत्तसंसारे, कालसंसारे, भाव संसारे॥१३७॥
कठिन शब्दार्थ - दिसाकुमारी महत्तरियाओ - दिक्कुमारी महत्तरिका-प्रधान दिशाकुमारियां, विजुकुमार महत्तरियाओ- विद्युत्कुमारी महत्तरिका-प्रधान विद्युतकुमारियाँ, मझिम परिसाए -
. नवें आणत और दसवें प्राणत इन दोनों देवलोकों का प्राणत नामक एक ही इन्द्र होता है । इसी प्रकार ग्यारहवें आरण और बारहवें अच्युत इन दोनों देवलोकों का अच्युत नामक एक ही इन्द्र होता है । इस तरह वैमानिक देवों के बारह देवलोकों के दस इन्द्र होते हैं ।
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