Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान ३ उद्देशक २
कठिन शब्दार्थ- सुमणे सुमन (हर्षवान्), दुम्मणे - दुर्मन- बुरे मन वाला, णो सुमणे णो दुम्मणे - नो सुमन नो दुर्मन - मध्यस्थभाव वाला, गंता जाकर, जामि- जाता हूँ, जाइस्सामि जाऊँगा, आगंता - आ कर, चिट्ठित्तं ठहर कर, णिसिइत्ता - बैठ कर, हंता - नष्ट कर, छिदित्ता - छेदन कर, बुहत्ता - बोल कर, दच्चा दे कर, भुंजित्ता - खा कर, लंभित्ता मिल कर, पित्तापीकर, सुइत्ता सो कर, जुज्झित्ता लड़ कर, जड़त्ता जीत कर, पराजिणित्ता - पराजित कर, गरहिया - गर्हित, पसत्था प्रशस्त, आजाई - आजाति - जन्म |
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भावार्थ - तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - सुमन अर्थात् हर्षवान्, दुर्मन अर्थात् बुरे मन वाला और नोसुमन नोदुर्मन अर्थात् मध्यस्थ भाव वाला। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई पुरुष विहार क्षेत्र आदि में जाकर सुमन होता है अर्थात् हर्षित होता है, कोई पुरुष विहार क्षेत्र आदि में जाकर दुर्मन होता है अर्थात् शोक करता है और कोई पुरुष विहार क्षेत्र आदि में जाकर नोसुमन नोदुर्मन होता है अर्थात् न हर्ष करता है न शोक करता है किन्तु मध्यस्थ रहता है। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा विहार क्षेत्र आदि में जाता हूँ ऐसा विचार कर कोई पुरुष सुमन वाला होता है, कोई पुरुष दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। इसी प्रकार 'जाऊँगा' ऐसा विचार कर कोई सुमन वाला होता है, कोई दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई पुरुष विहार क्षेत्रादि में न जाकर सुमन वाला होता है, कोई दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा- मैं विहारक्षेत्र आदि में नहीं जाता हूँ ऐसा विचार कर कोई पुरुष सुमन वाला होता है, कोई दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। तीन प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा- मैं विहार क्षेत्र आदि में नहीं जाऊँगा ऐसा सोच कर कोई सुमन वाला होता है, कोई दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। इसी प्रकार विहार-क्षेत्र आदि में आकर कोई सुमन वाला होता हैं, कोई दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। इस प्रकार इस अभिलापक के समान प्रत्येक में तीन तीन आलापक कह देने चाहिए। जैसे कि जाना, न जाना, आना, न आना, ठहरना, न ठहरना, बैठना, न बैठना, किसी वस्तु को नष्ट करना, किसी वस्तु को नष्ट न करना, छेदन करना, छेदन न करना, बोलना, न बोलना, संभाषण करना, सम्भाषण न करना, देना न देना, खाना न खाना, मिलना न मिलना, पीना न पीना, सोना न सोना, लड़ना न लड़ना, जीतना न जीतना, पराजित करना पराजित न करना । इस प्रकार इन प्रत्येक पर भूतकाल, भविष्यत् काल और वर्तमान काल की अपेक्षा तीन तीन आलापक कह देने चाहिए। शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्श ये पांच स्थान शुभ भाव रहित पुरुष के लिए गर्हित होते हैं और शुभ भाव युक्त पुरुष के लिए प्रशस्त होते हैं। इन पर तीन तीन आलापक इस प्रकार होते हैं। यथा शब्द सुनकर कोई सुमन वाला होता है, कोई दुर्मन वाला होता है और कोई मध्यस्थ रहता है। इसी प्रकार मैं शब्द सुनता हूँ ऐसा विचार कर कोई सुमन वाला होता है,
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