Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
प्रायश्चित्त आने वाला जिसमें नई दीक्षा आवे । जर्जरित यानी जिसमें दीक्षा का छेद आवे परिस्रावी यानी. सूक्ष्म अतिचार युक्त और अपरिस्रावी यानी निरतिचार।
चार प्रकार के कुम्भ कहे गये हैं यथा - कोई एक मधुकुंभ यानी शहद से भरा हुआ और मधुपिधान यानी मधु का ही ढक्कन वाला होता है। अर्थात् पूरा घड़ा नीचे से ऊपर तक शहद से भरा हुआ है। ऊपर तक भरा हुआ होने से उसे ऊपरी भाग को ढक्कन कह दिया है। कोई एक मधुकुम्भ यानी शहद से भरा हुआ किन्तु विषपिधान यानी विष के ढक्कन वाला होता है। तात्पर्य यह है कि बड़े की गर्दन तक तो शहद से भरा हुआ है परन्तु गर्दन की जगह ऊपर के हिस्से में जहर से भर दिया हो। ऐसा घड़ा मधुकुम्भ। कोई एक विषकुम्भ यानी विष से भरा हुआ किन्तु मधुपिधान यानी शहद के ढक्कन वाला होता है। कोई एक विषकुम्भ यानी विष से भरा हुआ और विषपिधान यानी विष ही का ढक्कन वाला होता है। इसी तरह चार प्रकार के पुरुष कहे गये हैं यथा - कोई एक पुरुष मधुकुम्भ और . मधुपिधान के समान होता है । कोई एक पुरुष मधुकुम्भ और विषपिधान के समान होता है। कोई एक पुरुष विषकुम्भ और मधुपिधान के समान होता है। कोई एक पुरुष विषकुम्भ और विषपिधान के समान होता है। इन चारों पुरुषों का विशेष खुलासा चार गाथाओं द्वारा बतलाया जाता है_ जिस पुरुष का हृदय पापरहित और कलुषतारहित है तथा जिह्वा सदा मधुर वचन बोलने वाली है वह पुरुष मधुकुम्भ और मधुपिधान यानी शहद से भरे हुए और शहद के ढक्कन वाले घड़े के समान है ।।१॥
जिस पुरुष का हृदय पापरहित और कलुषता रहित है किन्तु जिह्वा सदा कड़वे वचन बोलने वाली है वह पुरुष मधुकुम्भ और विपिधान यानी अन्दर शहद से भरे हुए और ऊपर विष के ढक्कन वाले घड़े के समान है ।।२॥
जिस पुरुष का हृदय पाप और कलुषता युक्त है और जिला मधुर वचन बोलने वाली है वह पुरुष विषकुम्भ और मधुपिधान यानी अन्दर विष से भरे हुए और ऊपर शहद के ढक्कन वाले घड़े के समान है ।।३॥ __ जिस पुरुष का हृदय पाप और कलुषता युक्त है तथा जिला कठोर एवं कड़वे वचन बोलने वाली है वह पुरुष विषकुम्भ विषपिधान यानी अन्दर विष भरे हुए और ऊपर भी विष के ढक्कन वाले घड़े के समान है ॥४॥
विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में तिरने वाले-तैराक के विषय में निरूपण किया गया है। संसार सागर से तिरने वाला भाव तैराक होता है। तैरने की शक्ति सब में एक जैसी नहीं होती है, इसी दृष्टि से सूत्रकार ने दो चौभंगियों द्वारा उसका दिग्दर्शन कराया है। __आगे के सूत्रों में सूत्रकार ने मानव को कुम्भ से उपमित किया है और कुम्भ की विभिन्न अवस्थाओं एवं वस्तु स्थितियों का चौभंगियों द्वारा दिग्दर्शन कराते हुए उसकी पुरुषों के साथ तुलना की
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