Book Title: Samyag Darshan Ki Vidhi
Author(s): Jayesh Mohanlal Sheth
Publisher: Shailendra Punamchand Shah

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Page 12
________________ सम्यग्दर्शन की विधि अब हम अपनी कहानी समझते हैं। अनादि से हम इस संसार में भटक रहे हैं। यहाँ जैसे अपना घर होता है और हम कहीं भी यात्रा पर जाते हैं तो घूम-फिरकर घर में वापिस अवश्य आ जाते हैं। इसी तरह हमारी आत्मा का अनादि से एक ही निवास स्थान है। उसका नाम है निगोद। निगोद अर्थात् अनन्तानन्त आत्मा एक ही शरीर में रहती हैं और एक साथ ही उन सबका जन्ममरण होता है। उनकी आयु अनुमानित अपने एक श्वासोच्छवास के १८वें भाग प्रमाण होती है अर्थात् उनके लगातार जन्म-मरण होते रहते हैं। हमारे शरीर के ३.५ करोड़ रोम में गरम सुई से बींध कर, शरीर को मिट्टी में रगड़ेंगे तब जितना दुःख होता है, उतना दुःख भगवान ने जन्म का बताया है और मरण का दुःख, उससे कई गुणा अधिक होता है। ऐसा जन्म-मरण का दुःख, निगोद के जीव को लगातार होता है। निगोद के जीव को सातवें नरक के जीव से कई गुणा अधिक दुःख होता है ऐसा भगवान ने कहा है। 6 अनादि से हम निगोद में ऐसे दुःख सहते थे। उसे अव्यवहार राशि या नित्य निगोद भी कहते हैं। कई ऐसे भी भव्य जीव हैं जो नित्य निगोद से कभी निकलनेवाले ही नहीं हैं। जब एक जीव का मोक्ष होता है, तब एक जीव उस अव्यवहार राशि में से व्यवहार राशि में आता है। इस प्रकार हम अनन्तानन्त पुद्गल परावर्तन काल बीतने पर निगोद में से निकलकर दो इन्द्रियादि गति में प्रवेश पाते हैं। यह हमारे लिये अभी तक का सबसे बड़ा पारितोषिक (Jackpot) है। निगोद से बाहर निकलने के बाद एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, नरक, युगलिया मनुष्य, पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्यंच युगलिया, देव आदि गतियों में असंख्यात-असंख्यात काल बिताने के पश्चात् हम कर्मभूमि में मनुष्य के रूप में जन्म पाते हैं। ऐसे कई मनुष्य जन्म पाने के बाद कभी एक बार हमारा जन्म आर्य क्षेत्र में होता है। ऐसे कई बार आर्य क्षेत्र में मनुष्य जन्म पाने के बाद कभी एक बार हमारा जन्म उच्च कुल में होता है। ऐसे कई बार उच्च कुल में मनुष्य जन्म पाने के बाद कभी एक बार हमें इन्द्रियों की परिपूर्णता और निरोगी शरीर मिलता है। ऐसे कई बार इन्द्रियों की परिपूर्णता और निरोगी शरीर पाने के बाद कभी एक बार हमें दीर्घायु मिलती है। ऐसे कई बार दीर्घायु पाने के बाद कभी एक बार हमें सत्य धर्म मिलता है। ऐसे कई बार हमें सत्य धर्म मिलने के बाद कभी एक बार हमें उस सत्य धर्म में रुचि जगती है। ऐसे कई बार हमें सत्य धर्म में रुचि जगने के बाद कभी एक बार हमें उस सत्य धर्म के ऊपर श्रद्धा जगती है। ऐसी श्रद्धा को परम दुर्लभ बताया गया है।

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