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सम्यग्दर्शन की विधि
विश्वास है। यहाँ अपने लिये जो हमने 'हम' सम्बोधन प्रयोग किया है, वह कोई मानवाचक शब्द नहीं समझना। उसका अर्थ त्रिकाल वर्ती आत्मानुभवी है क्योंकि त्रिकाल वर्ती आत्मानुभवियों की स्वात्मानुभूति एक समान ही होती है।
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पंच परमेष्ठी भगवन्तों को नमस्कार करके, शास्त्र और स्वानुभूति के आधार पर सम्यग्दर्शन, सम्यग्दर्शन की विधि, सम्यग्दर्शन के लिये आवश्यक भाव, सम्यग्दर्शन के लिये चिन्तन-मनन के विषय, उसके स्पष्टीकरण के लिये द्रव्य-गुण- पर्यायमय सत् रूप वस्तु को जो कि उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य रूप भी है, और जो केवल ज्ञान, केवल दर्शन और मुक्ति का कारण है; उसके विषय में विशेष स्पष्टीकरण सहित समझाने का प्रयास हमने इस पुस्तक में किया है। यह पुस्तक हमारी पूर्व की 'दृष्टि का विषय ' इस नाम से प्रकाशित पुस्तक में कुछ नया चिन्तन जोड़कर बनायी गयी है।
मुमुक्षु जीवों से हमारा अनुरोध है वे इस पुस्तक को आदि से अन्त तक अध्ययन करके अपना मत बनाएँ। अगर वे आधा-अधूरा या कुछ अंश पढ़कर अपना मत बना लेते हैं, तो वह उनका खुद के लिये ही छल है।
इस पुस्तक की रचना में हमने जिन-जिन ग्रन्थों का आधार लिया है, उसके लिये हम उनके लेखकों, आचार्य भगवन्तों के, उन ग्रन्थों की टीका रचनेवालों के, अनुवादकों के तथा प्रकाशकों के हृदयपूर्वक आभारी हैं। प्रत्येक ग्रन्थ की गाथा का अन्वयार्थ और भावार्थ ' ' में दिया है। इस पुस्तक की रचना में अनेक लोगों ने अलग-अलग रीति से सहयोग दिया है, हम उन सब के ऋणी हैं। उन सब का हम हृदयपूर्वक आभार मानते हैं। विशेष कर डॉ० जयकुमार जलज जी का प्रस्तावना लिखने के लिये और मनीष मोदी जी का सम्पादन करने के लिये हृदयपूर्वक आभार मानते हैं।
हमारी आत्मा की अनुभूति के विचारों को आप परीक्षा करके और यहाँ प्रस्तुत शास्त्र के आधार से स्वीकार करके सम्यग्दर्शन प्रगट करें, जिससे आप भी धर्म रूप परिणमें और मोक्षमार्ग पर अग्रसर होकर अन्त में सिद्धत्व को प्राप्त करें, इसी अभ्यर्थनासह ।
प्रस्तुत पुस्तक में जाने-अनजाने मुझसे कुछ भी जिनाज्ञा विरुद्ध लिखा गया हो तो त्रिविध त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं! उत्तम क्षमा!
मुम्बई :
:12-12-2018
सी. ए. जयेश मोहनलाल शेठ