Book Title: Proceedings and papers of National Seminar on Jainology
Author(s): Yugalkishor Mishra
Publisher: Research Institute of Prakrit Jainology & Ahimsa Mujjaffarpur

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ संस्थान के निदेशक डा. युगलकिशोर मिश्र का स्वागत- अभिभाषण सम्माननीय पद्मश्री के. एन. प्रसाद जी, डा. रामजी सिंह जी, प्रोफेसर लाल, गोरख बाबू तथा अभ्यागत महानुभाव एवं विद्वद्वृन्द ! आज इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में आप सबका स्वागत करते मुझे अपार हर्ष एवं गौरव का अनुभव हो रहा है । तिरहुत प्रमंडलायुक्त श्री ए. के. विश्वास, जो संस्थान की कार्यकारिणी समिति के अध्यक्ष के नाते स्वागत भाषण करनेवाले थे, अस्वस्थता के कारण समारोह में नहीं पधार सके। अतएव मैं उनकी ओर से तथा अपनी ओर से भी आप सबका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ तथा हृदय से बधाई देना चाहता हूँ कि आप सबने व्यक्तिगत एवं परिस्थितिगत कठिनाइयों को झेलते हुए दूरस्थ स्थानों से इस घोर ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित इस संस्थान के समारोह में पधारकर मेरा उत्साह बढ़ाया है । अभी कुछ ही क्षणों में आप प्रो. बसन्तकुमार लाल का वैदुष्यपूर्ण मुख्य अभिभाषण सुन सकेंगे। मैं उनके तथा आपके बीच और व्यवधान नहीं बनना चाहता । 1 प्रो. लाल दर्शन-जगत् के एक प्रतिष्ठित विद्वान् हैं। आपको लगभग ४० वर्षों का कई विश्वविद्यालयों में दर्शनशास्त्र के अध्यापन का अनुभव है तथा अपनी तार्किक अध्यापन - शैली के लिए विद्यार्थियों में आप काफी प्रिय तथा समादृत रहे हैं । आपके समान दार्शनिक विषय के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव बिरलों में ही दृष्टिगोचर होता है आप अपने विषय के उपस्थितशास्त्र एवं लब्धप्रतिष्ठ विद्वान् हैं तथा आपके निर्देशन में कई शोधप्रज्ञों ने सफलतापूर्वक डॉक्टर की उपाधि अर्जित की है। आपकी शैक्षणिक प्रकृति प्रारम्भ से ही शोधोन्मुख रही है तथा आपके शोध एवं लेखन का क्षेत्र काफी व्यापक रहा है । तुलनात्मक धर्म-दर्शन के अतिरिक्त आपकी विशेष अभिरुचि अत्याधुनिक भारतीय एवं पाश्चात्य दर्शनों में रही हैं। इन विषयों पर आपके कई प्रामाणिक ग्रन्थ प्रकाशित हैं। आपके लगभग १२५ शोध-पत्र भी अबतक प्रकाशित हो चुके हैं । आपने कई महत्त्वपूर्ण दार्शनिक ग्रन्थों तथा शोध-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया है । आपके कुशल निर्देशन में कई शोध-योजनाएँ सम्पन्न हुई हैं तथा आपकी अध्यक्षता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 286