Book Title: Kalpsootra Subodhika Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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कल्प
सत्र
दशाश्रुतस्कंध-अध्ययनं-८ "कल्पसूत्र"- (मूलं+वृत्ति:)
....... व्याख्यान [७] .......... मूलं [२२२] / गाथा [२...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..दशाश्रुतस्कंध-अध्ययन-८ "कल्पसूत्र मूलं एवं विनयविजयजी-रचिता वृत्ति::
प्रत
सूत्रांक
[२२२] गाथा ||२..||
दीवेसु दोसु अ समुद्देसु) सार्धद्वयद्वीपेषु द्वयोश्च समुद्रयोः ( सण्णीणं पंचिंदियाणं पजत्तगाणं ) सञ्जिना श्रीऋषभस्य | पञ्चेन्द्रियाणां पर्याप्तकानां (मणोगए भावे जाणमाणाणं) मनोगतान् भावान् जानतां (उकोसिया विउलमइसं-परीवारःसू. पया हुत्था) उत्कृष्ठा एतावती विपुलमतिसम्पत् अभवत् ॥(२२२)। (उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स) अष- २२३-२२६ भस्य अर्हतः कोशलिकस्य (बारस सहस्सा छच्च सया पण्णासा वाईणं)द्वादश सहस्राणि, पटू शतानि, पञ्चा|शच (१२६५०) बादिना (उकोसिया वाइसंपया हुत्था) उत्कृष्टा एतावती वादिसम्पत् अभवत् ।। (२२३)॥ (उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स) ऋषभस्य अर्हतः कोशलिकस्य (वीसं अंतेवासिसहस्सा सिद्धा) विंशतिः शिष्यसहस्राणि (२००००) सिद्धानि, (चत्तालीसं अजियासाहस्सीओ सिद्धाओ) चत्वारिंशत् ॥
आर्यिकासहस्राणि (४००००) सिद्धानि ॥ (२२४)॥ (उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स) ऋषभस्य अर्हतः18 | कौशलिकस्य (बावीससहस्सा नव सया अणुत्तरोववाइयाणं)द्वाविंशतिः सहस्राणि नव शतानि च (२२९००) अनुत्तरोपपातिनां (गइकल्लाणाणं) गतौ कल्याणं येषां ते तथा तेषां (जाव उको सिया संपया हुत्था) यावत् उत्कृष्टा एतावती अनुत्तरोपपातिनां सम्पत् अभवत् ॥ (२२५)॥ (उसभस्स णं अरहओ कोसलियस्स) ऋषभस्य अर्हतः कौशलिकस्य (दुविहा अंतगडभूमी हुत्था) द्विविधा अन्तकृमिः अभवत् (तंजहा) तद्यथा (जुगंतगडभूमी य परियायंतगडभूमी य) युगान्तकृभूमिः पर्यायान्तकृद्भूमिश्च (जाव असंखिजाओ पुरिसजुगाओ जुगतगभूमी) यावत् युगान्तकृभूमिरसङ्ख्येयानि पुरुषयुगानि भगवतोऽन्वयक्रमेण सिद्धानि (अंतो-19 १४
दीप अनुक्रम २०९]
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