Book Title: Jain Bharti 3 4 5 2002
Author(s): Shubhu Patwa, Bacchraj Duggad
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 54
________________ वांछनीय। क्योंकि संघर्ष विकास को भी बढ़ावा देता है। या राष्ट्र मेरे साथ सहमत नहीं है तो वह बुरा है। इन बिना संघर्ष के जीवन व समाज ठहर जाएगा। इसलिए अब परिस्थितियों में तटस्थता अभिशाप बन गई है। किंतु विचार हिंसक संघर्षों के निराकरण की बात होने लगी है। अधिकांश भेद होना तो लाजिमी है, क्योंकि हम भिन्न-भिन्न संघर्षों के कारणों में सचाई यह है कि हम चीजों को भिन्न परिस्थितियों से निर्देशित होते हैं। इसलिए यह सोच गलत तरीकों से देखते हैं। हमें दो परस्पर संघर्षी विचारों के साथ है कि एक पूर्ण सही है और दूसरा पूर्ण गलत। अतएव शांति निपटना सीखना चाहिए। हमें अपने फ्रेम ऑफ रेफ्रेन्स' को की दृष्टि से अब एक नया तर्कशास्त्र चाहिए। इस दर्शन में दूसरों के दृष्टिकोणों में समाहित कर व्यापक करना चाहिए। either...or का स्थान neither... nor या 'यह भी और पाश्चात्य सभ्यता में अभी भी अधिकांश संघर्ष विषयी- 'वह भी' ले लेता है। इस प्रकार की अनैकांतिक दृष्टि जैसा विषय के द्वैतवाद के कारण हो रहे हैं। बुद्धिवाद और कि व्हाईटहैड ने लिखा है अनुभववादियों के बीच संघर्ष का मूल कारण जन्मजात An endeavour to frame a coherent logical, (inherent) और सांयोगिक (Contingent) सिद्धांत ही रहा , necessary system of general ideas in terms of है। वस्तुतः तर्क एवं बुद्धिवाद के आधुनिक युग में जगत, which every element of our experience can be समाज और मानव के संदर्भ में कोई भी चिंतन एकांगी ही रहा interpretated. सी.ई.एम. जोड ने भी लिखा है-We है। यह चिंतन या तो वस्तुनिष्ठता के आधार पर किया गया must have a synoptic view of universe. हमें विश्व या आत्मनिष्ठता के आधार पर। परिणामतः जगत, समाज व की सामंजस्यपरक तस्वीर की परिकल्पना करके चलना मानव की सभी व्याख्याएं अपूर्ण रहीं। वस्तुनिष्ठवादियों ने पडेगा। इसलिए सापेक्ष चिंतन शांति और अहिंसा की नई जहां नैतिक मापदंडों व मानवीय मूल्यों की अवहेलना की वहीं सभ्यता की विचारधारा का पोषक है। एक अमेरिकन विद्वान आत्मनिष्ठवादियों ने ठोस सामाजिक वास्तविकताओं को एवं इतिहासविद् स्टीफन हे ने अपने एक लेख 'जैन नकारा। उत्तर आधुनिकता वैविध्यता और बहुलवाद पर बल इन्फ्लुएन्स ऑन गांधी' में लिखा हैदेती है तथा यह मानती है कि वैविध्यता इतनी व्यापक है कि It has been my experience, wrote Gandhi किसी एक आधार पर कोई भी चिंतन सार्वभौमिक नहीं हो in 1076_that I am alwave tri सकता। वस्तुनिष्ठवादी संघर्ष को हितों का संघर्ष मानते हैं। ये of view, and often wrong from the point of view हित किसी विषयी पर आधारित नहीं हैं, अपितु सामाजिक of my critics. I know that we are both right from संरचना के आधार पर निर्धारित होते हैं। वस्तुनिष्ठवादी ये our respective points of view.'. मानते हैं कि शांतिकर्मी विवाद का निपटारा तो करवा सकते उन्होंने फिर गांधीजी को उद्धृत करते हुए लिखा हैं, पर दोनों पक्षों के बीच संरचनात्मक संबंध नहीं बदलते हैइसालए असमानता विद्यमान रहता हा आत्मानष्ठवादा सघषा I very much like this doctrine of the को पक्षों के लक्ष्यों में विरोध की मात्रा के रूप में देखते हैं। manynece of reality Itic this doctrine that has अतः यहां शांतिपूर्ण साधनों से निपटारा संभव है। विरोध taught me to judge a Mussulman from his stand हमारी मानसिक कल्पना है, जबकि पक्ष के साथ प्रतिपक्ष की point and a Christian from his. .....From the स्वीकृति इस जगत का सौंदर्य। platform of Jainas, I prove the non creative aspect of God, and from the Ramanuja the यहां हम अरस्तू के न्याय की भी चर्चा करें। उसका creative aspect. As a matter of fact we are all तर्कशास्त्र आकारिक, द्वैतवादी और निरपेक्ष है। यह सत्य के thinking of the unthinkable, describing the सही स्वरूप को समझने की दृष्टि से अपर्याप्त है, क्योंकि indes indescribable, seeking to know the unknown, यह सिद्धांत समानता और अविरोध पर आधारित है। इसके and that is why our speech falters, is inadequate अनुसार कोई दो मार्ग नहीं, या तो आप सही हैं या आप and been of often contradictory. गलत हैं। निश्चित ही ये उद्धरण अनेकांत की व्यवहार्यता को विश्व अनेक विरोधी खेमों में बंटा है। वहां प्रकट करने के लिए पर्याप्त हैं। either...or की विश्व राजनीति है। यदि कोई व्यक्ति, विचार MAHARASHTRA मार्च-मई, 2002 स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती अनेकांत विशेष.53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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