Book Title: Jain Bharti 3 4 5 2002
Author(s): Shubhu Patwa, Bacchraj Duggad
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 138
________________ दूसरा कहता है—'यह मिट्टी है। तीसरी संभावना कि यह निमित्त को गौण और महत्त्वहीन बना दिया। दूसरा निमित्त घड़ा नहीं मिट्टी है। भगवान महावीर ने चौथा भंग की 'डफली' बजा रहा है। (दृष्टिकोण) जोड़ा-'स्यात् अनिर्वचनीय' अर्थात् कुछ भगवान महावीर ने केवल किताबी ज्ञान से 'तत्त्वऐसा भी है जो कहा नहीं जा सकता। घड़ा अणु भी है, ज्ञान' प्राप्त नहीं किया। उन्होंने अपने चिंतन, मनन और परमाणु भी है, इलेक्ट्रॉन भी है, प्रोटोन-विद्युत भी है। सब- साधना से सत्य को उपलब्ध किया। डॉ. जयकुमार 'जलज' कुछ हो सकता है। इन सबको इकट्ठा करना बड़ा मुश्किल ने एक आलेख में इस पर बहुत सपाट लिखा है-'हर वस्तु है। घड़े में अस्तित्व का होना-वह अनिर्वचनीय है। खद अपना उपादान है। सबको अपने पांवों से चलना है। पांचवां स्यात् है और अनिर्वचनीय है। छठा स्यात् नहीं है कोई दूसरा हमारे लिए उपादान नहीं बन सकता।' उन्होंने और अनिर्वचनीय है। भगवान महावीर के चिंतन को बहुत सारगर्भित ढंग से ईश्वर के संबंध में विभिन्न दर्शन भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किया। दूसरों के लिए हम उपादान नहीं बन सकते. रखते हैं। लेकिन निमित्त बन सकते हैं। 'जीओ और जीने दो' बहुत जहां उपनिषद् ब्रह्म की व्याख्या को असमर्थ कहता सरल शब्दों में महावीर का दर्शन प्रकट है। है वहीं बाईबिल कहता है कि ईश्वर की व्याख्या नहीं हो जीएंगे हम अपने उपादान से परंतु दूसरों को जीने का सकती। भगवान महावीर कहते हैं—ईश्वर या ब्रह्म की मौका देगें अपने निमित्त से। कोई किसी पर एहसान, कृपा, बात तो बड़ी है, एक घड़े की व्याख्या नहीं हो सकती। दया नहीं कर रहा है। परंतु हमारी ऐकांतिक दृष्टि पक्ष व्यामोह में 'अटकी है। हम 'ही' पर ठहरकर कूटस्थ बन 'स्यात्' शब्द संशय का सूचक नहीं है। स्यात् यह इंगित गए हैं। करता है कि किसी के बारे में कोई आग्रह नहीं, कोई एक दावा नहीं। 'एक' भी कूटस्थ नहीं है। वह कई एकांशों का बना है। सूर्य का सफेद प्रकाश देखने में एक है, परंतु वह भी सात अब तक विज्ञान में यह समझा जाता रहा कि अणु रंगों की प्रकाश तरंगों का सम्मिलन है। एक बिंदु है, जिसकी लंबाई-चौड़ाई नहीं होती। लेकिन प्रयोगों द्वारा जो निष्कर्ष निकले उनसे पता चला कि यह इसी प्रकार 'नय' विवक्षापूर्वक हमें अध्यात्म में प्रवेश अणु कभी बिंदु की तरह व्यवहार करता है तो कभी तरंग की करके इसे जीवन से जोड़ना है। क्योंकि जीवन अध्यात्म के लिए नहीं, बल्कि अध्यात्म जीवन के लिए है। जैसे चेतनतरह। आत्मा—कर्मों का कर्ता भी है और अकर्ता भी। वह भोक्ता ___ अणु की व्याख्या के लिए आइन्स्टीन को एक नया भी है और अभोक्ता भी। वह कर्तृत्व-बुद्धि वाला भी है और शब्द खोजना पड़ा-'क्वांटा'। क्वांटा का मतलब है कि अकर्तृत्व भी। वह साकार भी है और निराकार भी। वह कब परमाणु कण भी है और तरंग भी। उन्होंने कहा—दोनों कैसा है, इसे सापेक्ष और अनेकांत का आश्रय लेकर ही संभावनाएं एक साथ भी हैं। इस विचार क्रांति के बाद समझना होगा। गन्ने में रस होता है, परंतु छिलके के संयोग निरपेक्ष सत्य की सभी मान्यताएं डगमगा गईं। विज्ञान अब से वह देखने में नहीं आता। इसी प्रकार आत्मा कर्म की सापेक्ष के भवन पर खड़ा हो गया। इस वैज्ञानिक संदर्भ में संयोगावस्था में राग-द्वेष और अज्ञान के विकारी भाव से महावीर स्वामी की स्यात् भाषा परम सार्थक हो गई है। सहित है, परंतु उपादान से अखंड, अविकारी ध्रुव है। भेद विज्ञान सापेक्षता का सबल पकड़कर 'कम्प्यूटर' युग लक्ष्य से वह रागमय है और अखंड गण लक्ष्य से. राग से में प्रवेश कर मंगल ग्रह तक अपने पांव बढ़ा आया है। अलिप्त है। ऐसी दष्टि अनेकांत की देन है। अध्यात्म अनेकांत की संपदा से इतना समृद्ध होने पर भी, अनेकांत और स्याद्वाद से हमारी अभिव्यक्ति निमित्त-उपादान और नयवाद के विवाद में इतना क्यों फलती-फूलती है। प्रस्तुत आलेख में इसकी वैज्ञानिकता पर उलझा है। धर्म अपने वैचारिक द्वंद्वों में क्यों झूल रहा है? __एक अकिंचन प्रयास किया गया। इसकी सातत्यता के लिए एक ने वस्तु की उपादान क्षमता को इतना महत्त्व दे प्रज्ञावान पाठकों, विद्वानों और वैज्ञानिकों के विचारों के लिए डाला कि उसने 'निमित्त' को अकिंचित्कर कह डाला। बहुत हाशिया है। स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती मार्च-मई, 2002 अनेकांत विशेष - 137 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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