Book Title: Jain Bharti 3 4 5 2002
Author(s): Shubhu Patwa, Bacchraj Duggad
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 53
________________ घेराबंदी करते हैं, उसके व्यक्तित्व और उसके सम्मान पर बलात् आक्रमण करते हैं। हम शायद ही उन लोगों से सुनते है जो हमसे मूलभूत रूप से भिन्न विचार वाले हैं। खुली जांच था— Central to the आइन्स्टीन ने कहा advancement of human civilization is the spirit of open inquiry. We must not only learn to tolerate our differences, we must welcome them as the richness and diversity which can lead to true intelligence. यह कहा जाता है कि कम से कम तीन सत्य सदैव होते हैं- - आपका सत्य, मेरा सत्य और सत्य । अधिकांश वैज्ञानिक सहमत होंगे कि सत्य की व्यक्तिगत अभिव्यक्ति केवल अनुमानित ही हो सकती है। हममें से प्रत्येक का दृष्टिकोण हमारे व्यक्तिगत इतिहास, मूल्य और विश्वासों से प्रभावित होता है। जैसे कि वाल्टर लिपमान ने कहा था— 'We see through the stereotypes and the pictures in our minds," हम एक तरह से देखते हैं और दूसरे उसे भिन्न तरीके से देखते हैं और हम जैसा देखते हैं वैसे ही हम वास्तविकताओं को बना लेते हैं। खुली जांच के लिए यह आवश्यक है कि हम सापेक्ष देखना सीखें। उदाहरणार्थ पृथ्वी के एक नक्षत्र मंडल को तब से देखते रहे हैं जब से मनुष्य ने नक्षत्रों का अध्ययन शुरू किया। किंतु हम अंतरिक्षयान से यात्रा करें और किसी विशेष नक्षत्र को पृथ्वी से आधी दूरी से देखें तो अब उस नक्षत्र मंडल का आकार पहले जैसा नहीं दीखेगा, थोड़ा और नजदीक जाने पर नक्षत्र मंडल के तारे भी अदृश्य हो जाएंगे। अर्थात् जिसे हम सत्य कहते हैं, जहां हम खड़े हैं— उसके सापेक्ष है । What we say truth is relative to where we are standing. हम केवल एक ही कोण से देखते हैं, परिणामतः हमारा चिंतन संकीर्ण हो जाता है और हम उन्हीं की ओर ध्यान देते हैं जो हमसे सहमत हैं। वैविध्य के साथ अंतर्क्रियाओं का अनुभव न करके हम सचाई से स्वयं को अलग रखते हैं। यद्यपि दूसरों को सुनने या दूसरे के मत को जानने की इच्छा उससे सहमत या असहमत होना नहीं है, बल्कि सत्य की दिशा में आगे बढ़ने के लिए सूचनाएं संगृहीत करना है। 52 • अनेकांत विशेष Jain Education International यह विश्वास कि हमारा मार्ग ही सत्य है— हमें सुरक्षा की अनुभूति देता है। हम डरते हैं कि यदि हम एक दृष्टिकोण को ग्रहण कर रहे हैं जो हमारे अपने दृष्टिकोण से मेल नहीं खाता, वह हमें भ्रमित या विचलित कर सकता है। यहां मूलतः लगाव ( आसक्ति) की समस्या है। हम हमारी वर्तमान स्थिति के साथ हमारी मूलभूत पहचान से भ्रमित होते हैं और हम नए विचारों को सुनने तथा खुली जांच की हमारी क्षमता को सीमित कर देते हैं। यदि हम अपने सतर्क आत्म के केंद्र में होंगे तो हम अपने दृष्टिकोण पर रहते हुए दूसरे के दृष्टिकोण को सुनने में पूर्ण सक्षम होंगे। यही शांति का आधार होगा। थिच हाटहान ने लिखा है - The situation of the world is still like this. People completely identify with one side, one ideology....Reconciliation is to understand both sides...Doing only that will be a great help for peace. जब हम मतभेद देखते हैं तो हमारा झुकाव सावधान रहने की ओर हो जाता है तथा हमारी ग्रहणशीलता कम हो जाती है। हम सुरक्षात्मक प्रयासों की ओर चले जाते हैं या हम पलायन कर जाते हैं। यहां यह जानना महत्त्वपूर्ण है कि भय की भूमिका खुली जांच को अवरुद्ध करती है तथा सृजनात्मक संचार को रोकती है। यदि हमें विभिन्न राजनीतिक, सांस्कृतिक, नस्लीय मतों में खुली जांच को बढ़ाना है तो हमें हमारे अंतर्संबंधों में भय के स्तर को कम करना होगा तथा विरोधियों के साथ भी संवाद करना होगा अन्यथा एक प्रजाति के रूप में हमारा अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। क्रेग शिण्डलर और से लेपिड ने लिखा है *Exploring understanding from all directions. The willingness to keep an open mind, to seek truth without prejudice, to inform ourselves from many points of views." हमारे दृष्टिकोण को व्यापक कर सकती है। यही खुली जांच ही हमारी समझ को बढ़ा सकती है, संघर्ष एवं संघर्ष निराकरण संघर्ष को प्रारंभिक काल में बुरा माना गया तथा संघर्ष से निपटने का एक मात्र तरीका हिंसा रहा है। अब यह सोच बना है कि संघर्ष अपरिहार्य है तथा हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग है। संघर्ष का विलोपन न तो संभव है और न स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती For Private & Personal Use Only मार्च - मई, 2002 www.jainelibrary.org

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