Book Title: Jain Bharti 3 4 5 2002
Author(s): Shubhu Patwa, Bacchraj Duggad
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 120
________________ कहानी कुंज के भीतर अकूतागावा MER । वह कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था। पत्तों से उसका मुंह टुसा पड़ा था। बुदबुदाते उसके होंठों से लग रहा था, जैसे । वह कह रहा हो, 'मुझे मारो!' जड़-चेतन से तटस्थ होकर मैंने उसके किमोनो में तलवार ओंक दी। मेरी नजर बरावर राज्य पर थी। नहीं तो बेहोशी पुनः मुझ पर हमला बोलती। उसके प्राण निकल रहे थे। सूर्य की आखिरी किरण में उसका पीला चेहरा चमक उठा। सिसकियां दबाकर मैने रस्सी इकही कर ली। इसके बाद में कहां-कहां पहुंची, क्या- ॥ क्या किया यह सुनाने की हिम्मत अब बाकी नहीं बची है। एक बात जरूर है कि मैंने मन से मौत को नहीं बुलाया। मुझमें वह साहस नहीं था। नहीं तो वह तलवार कई बार मैंने गले पर फेरी थी। एक जगह पहाड़ की तलहटी से कदने की कोशिश की थी। आत्महत्या के कई असफल प्रयास किए । आज निर्लज्ज होकर आप लोगों में जिंदा खड़ी हूं। sansamoommonam पुलिस उच्चायुक्त के सामने लकड़हारा 'घोड़ा?' जी हां, सबसे पहले मैंने ही लाश को देखा था। रोज वहां घोड़ा नहीं था। वह इतनी तंग जगह है कि वहां की तरह उस सुबह भी मैं लकड़ी काटने जंगल जा रहा था। एक बार एक ही आदमी जा सकता है, या एक जानवर। रास्ते में एक पहाड़ी गुफा आई। गुफा के पास घनी झाड़ियां । बौद्ध पुरोहित थीं। वहीं मृतक का शरीर पड़ा था। निश्चित रूप से महोदय! यह कल दोपहर की बात आप जगह की पूरी जानकारी चाहते हैं? है। यह बदनसीब प्राणी येमेशिना से सिकियामा जा रहा था। यह जगह ठीक येमेशिना मुख्य मार्ग से 150 कि. तभी यह आदमी भी घोड़े पर सवार होकर जा रहा था। मी. दूर है। वहां बांस और देवदार का झुरमुट हैं। मैंने देखा, इसके साथ कोई महिला थी। बाद में मालूम हुआ कि वह मृतक के सिर पर क्योतो शैली का एक मुसा-तुसा कपड़ा इसकी पत्नी थी। महिला के सिर पर बंधा स्कार्फ बार-बार बंधा था। शरीर नीले किमोनो में लिपटा था। जमीन पर गिरे उड़ रहा था, जिससे उसका मुंह छिप जाता था। बाकी उसके सपाट शरीर को देखकर लगता था कि तलवार के कपड़ों में सिर्फ सूट का नीला कालर चमक रहा था। एक ही वार ने उसकी छाती के दो टुकड़े कर डाले थे। मेरे उसके ललछौंह भूरे घोड़े का नाम आकर्षक था। पहुंचने तक उसके शरीर से खून निकलना बंद हो चुका था 'लम्बाई?' और आहट की परवाह किए बिना कुक्कुरमाछी घाव से चिपक रही थी। उफ! मृतक लगभग पांच फीट-पांच इंच का था। पुरोहित होने के कारण लोगों का अंग विस्तार देखने की 'हथियार?' मेरी आदत नहीं है। यह मेरे धर्म के विपरीत है। एक बात नहीं, वहां कोई हथियार नहीं था। देवदार के नजदीक मुझे ठीक से याद है कि मृतक के पास एक तीर-कमान था। बस एक रस्सी पड़ी थी। हां, एक कंघा भी था। आसपास आह. नियति! किसको पता था—इसकी यह दुर्दशा होगी! बिखरी घास और बांस के पत्ते अभी तक नीचे की तरफ मानव जीवन वास्तव में उषाकालीन हिमकणों या घटा में बंद झुके थे, जिनसे पता चलता था कि मरने से पहले उसकी बिजली जैसा अस्थिर है। ऐसी दयनीय मौत पर शोक प्रकट दुश्मन के साथ खासी झड़प हुई होगी। करने के लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती मार्च-मई, 2002 अनेकांत विशेष.119 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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