Book Title: Jain Bharti 3 4 5 2002
Author(s): Shubhu Patwa, Bacchraj Duggad
Publisher: Jain Shwetambar Terapanthi Mahasabha

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Page 72
________________ समझना है तो हमें उसके वासनात्मक पहलू और मृदु आत्मीय व्यवहार एक अच्छा प्रेरक हो सकता है तो आदर्शात्मक पहलू (विवेक)—दोनों को ही देखना होगा। दूसरे के लिए कठोर अनुशासन की आवश्यकता हो सकती मनुष्य में न केवल वासना और विवेक के परस्पर विरोधी है। एक व्यक्ति के लिए आर्थिक उपलब्धियां ही प्रेरक का गुण पाए जाते हैं, अपितु उसमें अनेक दूसरे भी परस्पर कार्य करती हैं तो दूसरे के लिए पद और प्रतिष्ठा महत्त्वपूर्ण विरोधी गुण देखे जाते हैं। उदाहरणार्थ-विद्वत्ता या मूर्खता प्रेरक तत्त्व हो सकते हैं। प्रबंध-व्यवस्था में हमें व्यक्ति की को लें। प्रत्येक व्यक्ति में विद्वत्ता में मूर्खता और मूर्खता प्रकृति और स्वभाव को समझना आवश्यक होता है। एक में विद्वत्ता समाहित होती है। कोई भी व्यक्ति समग्रतः प्रबंधक तभी सफल हो सकता है जब वह मानव-प्रकृति की विद्वान या समग्रतः मूर्ख नहीं होता है। मूर्ख में भी कहीं-न- इस बहुआयामिता को समझे और व्यक्तिविशेष के संदर्भ में कहीं विद्वत्ता और विद्वान में भी कहीं-न-कहीं मूर्खता छिपी यह जाने कि उसके जीवन की प्राथमिकताएं क्या हैं? प्रबंध रहती है। किसी को विद्वान या मूर्ख मानना, यह सापेक्षिक और प्रशासन के क्षेत्र में एक ही चाबुक से सभी को नहीं कथन ही हो सकता है। मानव व्यक्तित्व के संदर्भ में हांका जा सकता। जिस प्रबंधक में प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति मनोविश्लेषणवादियों ने वासनात्मक अहं और आदर्शात्मक की जितनी अच्छी समझ होगी, वह उतना ही सफल प्रबंधक अहं की जो अवधारणाएं प्रस्तुत की हैं वे यही सूचित होगा। इसके लिए अनेकांत दृष्टि या सापेक्ष दृष्टि को करती हैं कि मानव व्यक्तित्व बहुआयामी है। उसमें ऐसे अपनाना आवश्यक है। अनेक परस्पर विरोधी गुण-धर्म छिपे हुए हैं। प्रत्येक प्रबंधशास्त्र के क्षेत्र में वर्तमान में समग्र गुणवत्ता व्यक्ति में जहां एक ओर कोमलता या करुणा का भाव रहा प्रबंधन (Total Quality Management) की अवधारणा हुआ है वहीं दूसरी ओर उसमें आक्रोश और अहंकार भी प्रमुख बनती जा रही है. किंत व्यक्ति अथवा संस्था की विद्यमान है। एक ही मनुष्य के अंदर इनफिरियारिटी समग्र गणवत्ता का आकलन निरपेक्ष नहीं है। गुणवत्ता के कांपलेक्स और सुपीरियारिटी कांपलेक्स दोनों ही देखे अंतर्गत अनेक गुणों की पारस्परिक समन्वयात्मकता जाते हैं। कभी-कभी तो हीनत्व की भावना ही उच्चत्व की आवश्यक होती है। विभिन्न गणों का पारस्परिक सामंजस्य भावना में अनुस्यूत देखी जाती है। भय और साहस में रहते हुए जो एक समग्र रूप बनता है वही गुणवत्ता का परस्पर विरोधी गुण-धर्म हैं। किंतु कभी-कभी भय की आधार है। अनेक गुणों के पारस्परिक सामंजस्य में ही अवस्था में ही व्यक्ति अकल्पनीय साहस का प्रदर्शन गुणवत्ता निहित होती है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में विभिन्न करता है। इस प्रकार मानव व्यक्तित्व में वासना और गुण एक-दूसरे के साथ समन्वय करते हुए रहते हैं। विवेक, ज्ञान और अज्ञान, राग और द्वेष, कारुणिकता और विभिन्न गुणों की यही सामंजस्यतापूर्ण स्थिति ही गुणवत्ता आक्रोश, हीनत्व और उच्चत्व की ग्रंथियां एक साथ देखी का आधार है। व्यक्ति के व्यक्तित्व में विभिन्न गुण ठीक जाती हैं। इससे यह फलित होता है कि मानव व्यक्तित्व उसी प्रकार सामंजस्यपूर्वक रहते हैं जिस प्रकार शरीर के भी बहुआयामी है और उसे सही प्रकार से समझने के लिए विभिन्न अवयव सामंजस्यपूर्ण स्थिति में रहते हैं। जैसे अनेकांत की दृष्टि आवश्यक है। शरीर के विभिन्न अंगों का सामंजस्य टूट जाना शारीरिक प्रबंधशास्त्र और अनेकांतवाद विकृति या विकलांगता का प्रतीक है, उसी प्रकार व्यक्ति वर्तमान युग में प्रबंधशास्त्र एक महत्त्वपूर्ण विधा है, के जीवन के गुणों में पारस्परिक सामंजस्य का अभाव किंतु यह विधा भी अनेकांत दृष्टि पर ही आधारित है। किस व्यक्तित्व के विखंडन का आधार बनता है। पारस्परिक व्यक्ति से किस प्रकार कार्य लिया जाए ताकि उसकी संपूर्ण सामंजस्य में ही समग्र गुणवत्ता का विकास होता है। योग्यता का लाभ उठाया जा सके, यह प्रबंधशास्त्र की अनेकांत दृष्टि व्यक्तित्व के उन विभिन्न गुणों या पक्षों विशिष्ट समस्या है। प्रबंधशास्त्र, चाहे वह वैयक्तिक हो या और उनके पारस्परिक सामंजस्य को समझने का आधार संस्थागत, उसका सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष तो व्यक्ति ही है। व्यक्ति में वासनात्मक पक्ष अर्थात् उसकी जैविक होता है और प्रबंध और प्रशासक की सफलता इसी बात पर आवश्यकताएं और विवेकात्मक पक्ष अर्थात् वासनाओं के निर्भर होती है कि हम उस व्यक्ति के व्यक्तित्व और उसके संयमन की शक्ति दोनों की अपूर्ण समझ किसी प्रबंधन के प्रेरक तत्त्वों को किस प्रकार समझाएं। एक व्यक्ति के लिए प्रबंधक की असफलता का कारण ही होगी। समग्र गुणवत्ता स्वर्ण जयंती वर्ष जैन भारती मार्च-मई, 2002 अनेकांत विशेष.71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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