Book Title: Tattvartha Sutra Jainagam Samanvay
Author(s): Atmaram Maharaj, Chandrashekhar Shastri
Publisher: Lala Shadiram Gokulchand Jouhari

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Page 12
________________ अावश्यक सूचना पाठकों से सविनय निवेदन है कि सम्पादक जी की रुग्णावस्था के कारण प्रूफ आदि के ठीक न देखने से, कतिपय स्थलों में त्रुटियें रहगई हैं, अतः यदि सुज्ञ पाठकों द्वारा हमें सूचनाएं मिलती रहें तो हम द्वितीय संस्करण में ठीक करने की चेष्टा करेंगे । ____ तथा--यदि कोई आगमाभ्यासी आगम पाठों से और भी सुचारु रूप से समन्वय करने की कृपा करें, तो हमको सचित करदें जैसे कि--तत्त्वाथसूत्र के ५ अध्याय के २६ वाँ सूत्र, " एगत्तेण पुहत्तेण खंधाय परमाणु य(एकत्वेन पृथकत्वेन स्कन्धाश्चपरमाणावश्च ) उत्तराध्ययन सूत्र प्र० ३६ गाथा ११--इस पाठ से सम्बन्ध रखता है । इसी प्रकार की अन्य सूचनाओं से भी सूचित करें, ताकि उन पर आवश्यक ध्यान दिया जा सके । __ ग्रन्थ के अंतिम भाग में तत्त्वार्थ सूत्र भाषा के नाम से परिशिष्ट दिया गया है। उसमें तत्वार्थ के मूलसूत्रों का अर्थ किया गया है । परन्तु सत्वरतादि कारणों से अर्थ सम्बन्धी कतिपय स्थल संदिग्ध एवं अस्पष्ट से रह गये हैं । अतः वाचक महोदय उन २ स्थलों को सावधानी से पढ़ें । ___ समन्वयकर्ता ने जो दिगम्बर सूत्र पाठों के साथ समन्वय किया है, यह उनके अपने उदार भावों का संसूचक है । जिससे दिगम्बर विद्वान भी आगमों के स्वाध्याय से लाभ पठायें और परस्पर प्रेमभाव सम्पादन कर जैन धर्म का संगठित शक्ति से प्रचार करें । जिस से जनता जैनधर्म के तत्वों को भली भाँति धारण कर सके। प्रकाशक. --------:0

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