Book Title: Shodashak Granth Vivaran
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Keshavlal Jain
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।। नमः श्रीमहर्षिपूज्यगंभीरविजयेभ्यो.।।
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षोडशकग्रंथ-विवरणं ।
अमृतमिवामृतमनघं,
जगाद जगते हिताय यो वीरः। तस्मै मोहमहाविष
विघातिने स्तान्नमः सततं ॥१॥ यस्याः संस्मृतिमात्राद्
भवन्ति मतयः सुदृष्टपरमार्थाः । वाचश्च बोधविमलाः सा
जयतु सरस्वती देवी ॥२॥

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