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________________ (१७१) सतमिना कहि साधन थिर राजे अब करतार । कूट न भार न सारी कहस तीन के परकार ॥ प्रति-पं० ११३, पंक्ति १५, अक्षर ११, [अनूप संस्कृत लाइब्रेरी] ( २०) पडऋतुवर्णन अथ श्रीषम वर्णन दसौं दिसंत चह अवालौ प्रति प्रीषम मैं जल थल विकल अवनि सब धहरी । अमन के पुंज दोऊ श्रौचको मिले है कुंज द्रुमके वेलीनिको तकि कवि छाह गहरी । राधा हरि भूलि पल रूप के सखी सुख, रहके बटो अनुराग लहरी । नंदमा सौ लग्यो मात नादिसी सी लगि धूप सरद की राति भई जेठ की दुपहरी ॥ १॥ ग्रीष्मवर्णन पय ३१, वर्षा ६७, सरद के २५, हिमके १०+ १० + १०-६५, संवत ३३. फूलनि के बंगला झरोखा अटारी जारी फूल की सिवारी छबि मारी रंग रंग है । फूलनि भूषण वसन तन फूलनि के फूलि रहे सावन गवर अंग अंग हैं । कुंजनि में नैन फूले नैननि में कुंज फूले सुखो मुख दिपी दुति महल अनंग है । विहारी विहारनि विहरै दिठि दरपननिरूप काय व्यू ह है भूलके दोउ संग है ॥ इति वसंत संपूर्ण । मंवत १७ ८९ वर्षे मिति फागण सुदि ४ बुधवार वि. अंत में कृषिजापचीसी मलूकचद् कुन है ६६ ४२६. प्रति- पत्र ८१, पं० ११, अ० १६, साइज ६|| ४ || [अनूप संस्कृत पुस्तकालय]
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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