Book Title: Rajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Rajasthan Vishva Vidyapith
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राजस्थान ने अपने प्रान्त की मरु राजस्थानी भाषा में विशाल माहित्य-सृजन करने के साथ हिन्दी-साहित्य की भी बहुत बड़ी सेवा की है। यहाँ के राजाओं, राज्याश्रित कवियों, संतों, जैन विद्वानों ने हजारों छोटी-मोटी रचनाएं हिन्दी में बनाकर हिन्दी साहित्य की सद्धि में हाथ बंटाया है । उनकी उस सेवा का मूल्यांकन तभी हो सकेगा जबकि राजस्थान के हस्तलिखित हिन्दी ग्रन्थों की भली भाँति शोध की जाकर उनका विवरण प्रकाश में लाया जायगा।
राजस्थान में हस्तलिखित प्रतियों की संख्या बहुत अधिक है। क्योंकि साहित्य मंरक्षण की दृष्टि से राजस्थान अन्य सभी प्रान्तों से उल्लेखनीय रहा है। यहाँ के स्वातंत्र्य प्रेमी वीरों ने विधर्मियों से बड़ा लोहा लिया और अपने प्रदेश को सांस्कृतिक, धार्मिक और साहित्यिक हीनता से बचाया । पर गत १००-१५० वर्षों में मुसलमानी साम्राज्य के समय से भी अधिक यहाँ के हस्तलिखित साहित्य को धक्का पहुंचा। एक ओर तो अन्य प्रान्तों व विदेशों में यहां की हजारों हस्तलिखत प्रतियां कोड़ी के मोल चली गई दूसरी ओर मुद्रण युग के प्रभाव व प्रचार और शिक्षण की कमी के कारण उस साहित्य के संरक्षण की ओर उदासीनता ला दी । फलतः लोगों के घरों एवं उपाश्रयों आदि में जो हजारों हस्तलिखिन प्रतियाँ थी वे सर्दी व उदेयी के कारण नष्ट हो गई । उससे भी अधिक प्रतियाँ रद्दी कागजों से भी कम मूल्य में बिक कर पूड़ियाँ आदि बांधने के काम में समाप्त हो गई। फिर भो राजस्थान में प्राज लाखो हस्तलिग्यित प्रतियाँ यत्र तत्र विखरी पड़ी थी है, जिनका पता लगाना भी बड़ा दुरूह कार्य है । राजकीय संग्रहालय एवं जैन ज्ञान भंडार ही अधिक सुरक्षित रह सके हैं, व्यक्तिगत संग्रह बहुत अधिक नष्ट हो चुके हैं। जैन-ज्ञान-भंडारों में बहुत ही मूल्यवान जैन जैने तर विविध विषयक विविध भापाओं के ग्रन्थ सुरक्षित है। हिन्दी की जननी अपभ्रंश भाषा का साहित्य, सबसे अधिक जैनों का ही है और राजस्थान के जैन- ज्ञान - भण्डारों में वह बहुत अच्छे परिमाण में प्राप्त है । आमेर, जयपुर और नागौर के दिगम्बर भंडार इम दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण हैं । अभी २ इन भंडारों से पचालों अज्ञात अपभ्रश रचनाएं जानने में आई । हिन्दी के जैन ग्रंथों के भी इन भंडारों से जो सूचो पत्र बने उन से बहुत मी नवीन जानकारी मिली है। हर्ष की बात है कि महावीरजी तोर्थ क्षेत्र कमेटी की ओर से आमेर, और जयपुर के दिगम्बर सरस्वतं भंडारों की सूची के दो भाग और प्रशस्ति संग्रह का एक