Book Title: Jain Shiloka Sangraha Pustika
Author(s): Nana Dadaji Gund
Publisher: Nana Dadaji Gund

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Page 8
________________ ॥ नोला जुगलिया नेदन जाणे, सोनुं रुपूं लेइ देवाने आणे ॥ २१ ॥ जनुं अन्न पाणी कोइ न यापे, कष्टें अंतरादिक कर्मने कापे ॥ संजमि या साथै फल फूल खाये, पोतें गजपुरमां गोच री जाये ॥ २२ ॥ श्रेयांस जाती स्मरणज पायो, तिसमे नेट इ रस लायो || पहेलुं पा रां तो प्रभुने कराव्यं, पसली मांहे इकु रस वोहोराव्यं ॥ २३ ॥ प्रथम प्रभु श्रेयांसने तूठा || साठी बारे कोड सोनैया वूठा । त्यांथी पण चा ल्या आदेश नळी, देशमां केहवराव्यं श्रेयांसें तूठी ॥ २४ ॥ ति शिल्लाने उद्याने याया, सांजली बाहुबल त्याहांथी सिधाव्या || परनातें बेटो वांदवाने जाय, जूए घणुं पण दरशन न थाय ॥ २५ ॥ कानें अंगुलि देइ तेसे साद की धो, तुरके अद्यापि पंथज लीधो ॥ श्रदिश्वर पूं रम ताल में आया, कर्म खनावी केवल पाया ॥ ॥ २६ ॥ चोमुख बेठाने वाजित्र वाजे, तेल स मे जरत पाट वधाये ॥ चक्र उपनुं नवनिधि पा इ, बेटा हा ल्यो दीक्षा नाइ ॥ २७ ॥ बाहु 'बेल टुके तो टेक जणाइ, संजम लीधो तो तिप

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